प्रकाश चन्द्र पुनेठा
हमारे देश को स्वतंत्रता मिले हुए मात्र 68 दिन हुए थे। हमारे देश से धर्म के आधार पर विभाजित हुए पाकिस्तान ने अपनी सेना को कबायलियों का वेश धारण करवा कर जम्मू-कश्मीर में आक्रमण कर दिया। उस समय देश में सभी राजा-रजवाड़े, भारत के केन्द्र में स्थित सरकार में अपने-अपने राज्य का विलय कर रहे थे। जम्मूू-कश्मीर के महाराजा हरी सिंह ने भारत में विलय की प्रक्रिया में विलंब कर दिया। भारत के केन्द्र में स्थित सरकार में जम्मू-कश्मीर राज्य की विलय प्रक्रिया में विलंब देख, पाकिस्तान ने अचानक ही जम्मू-कश्मीर में अपना कब्जा करने की गलत नियत से आक्रमण कर दिया। पाकिस्तान के सशस्त्र कबायली कश्मीर में भयंकर मार-काट और अत्याचार करते हुए श्रीनगर की दिशा में तेजी से बड़ रहे थे। तभी महाराजा हरी सिंह ने विलय पत्र में शीघ्र हस्ताक्षर कर भारत के तत्कालिन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु के समक्ष जम्मू-कश्मीर को पाकिस्तानी कबायलियों से बचाने के लिए गुहार लगाई। प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरु ने शीघ्र ही भारतीय सेना को पाकिस्तानी कबायलियों को कश्मीर से मार-भगाने का आदेश दिया। प्रधान मंत्री के आदेश का अति शीघ्र पालन करते हुए भारतीय सेना जम्मू-कश्मीर पहुँच गई।
जम्मू-कश्मीर की रक्षा करने पहुँची पहली भारतीय सेना की टुकड़ियों में सिख रेजिमेंट के अतिरिक्त चार कुमाउं रेजिमेंट भी थी। चार कुमाउं रेजिमेंट की डेल्टा कम्पनी को श्रीनगर हवाई अड्डे की रक्षा करने का उत्तरदायित्व दिया गया। नौजवान व आकर्षक व्यक्तित्व के धनी मेजर सोमनाथ शर्मा चार कुमाउं की डेल्टा कम्पनी के कम्पनी कमांडर थे। जिस समय मेजर सोमनाथ शर्मा ने हवाई अड्डे की सुरक्षा का उत्तरदायित्व लिया था, उनके बांये हाथ में हाकी खेलते हुए चोट लगी थी। जिसके कारण उनके बांये हाथ में प्लॉस्टर चड़ा हुआ था।
मेजर सोमनाथ शर्मा की डेल्टा कम्पनी में सभी सैनिक पर्वतीय क्षेत्र कुमाउं के थे। मेजर सोम नाथ शर्मा स्वयं भी हिमाचंल के कांगड़ा के निवासी थे। मेजर सोम नाथ शर्मा का,े शाँति क्षेत्र का कार्य हो या युद्ध के रण में विजय प्राप्त करनी हो, उस कार्य को पूरी निष्ठा से करने का अपने उपर तथा अपने सैनिकों के उपर बहुत अधिक भरोसा था। पाकिस्तानियों को शीघ्र ही कश्मीर से मार-भगाने के लिए मेजर सोमनाथ शर्मा अपनी कम्पनी के साथ 31 अक्टूबर 1947 को कश्मीर के श्रीनगर में पहुँच गए थे। उनकी कम्पनी में ब्रेन गनर सिपाही दिवान सिंह दानु भी था। सिपाही दिवान सिंह दानु बहादुर, साहसी और आज्ञाकारी सैनिक था। दिवान सिंह दानु जिला पिथौरागढ ़(उस समय जिला अल्मोड़ा) के तल्ला जौहार क्षेत्र में, बिर्थी गाँव से लगभग तीन किलोमीटर दूर पुरदम गाँव का रहने वाला था। सिपाही दिवान सिंह दानु सन् 1943 में रानीखेत में भर्ती हुए था।
सिपाही दिवान सिंह दानु के जन्म के समय हमारा देश ब्रिटिश शासन के अन्दर पराधीन था। देश में अधिकांश जनता अशिक्षित थी। हमारे पहाड़ में गरीबी, निरक्षरता व अन्य सुविधाओं का स्तर शून्य से निचे था। न स्कूल थे, न अस्पताल न यातायात व न संचार के साधन थे। एक जिले से दूसरे जिले में जाने के लिए पैदल जाना होता था, जिस कारण पैदल चलने में कई दिन लग जाते थे। पुरदम गाँव के रहने वाले उदय सिंह और रमुली देवी के दांपत्य जीवन में सात संतानों का जन्म हुआ। चार पुत्र और तीन पुत्रियां। इन सब में दिवान सिंह दानु सबसे बड़े थे। दिवान सिंह दानु परिवार के सबसे बड़ा पुत्र होने के कारण, वचपन से ही अपने परिवार के प्रति उत्तरदायित्वों को, जैसे कि, अपने माता-पिता को सहारा देना, भाईयों का भविष्य सक्षम बनाना और बहनों की समय में शादी करना, इन सब उत्तरदायित्वों को वह भली-भाँति समझते थे। पुरदम गाँव व उसके आस-पास के क्षेत्र म,ें उस समय विद्या ग्रहण करने के लिए दूर-दूर तक कोई विद्यालय नही था। आम जनता निर्धनता के कारण अपने बच्चों को शिक्षा दिलाने के लिए दूर शहरों में भेजने में असमर्थ थी। इस अभाव के कारण दिवान सिंह दानु सहीत अनेक नौनिहाल शिक्षा से वंचित रह जाते थे।
दिवान सिंह दानु को बचपन से ही सेना में जाने का बहुत अधिक शौक था। जब वह किसी वर्दी धारी सैनिक को देखते तो उनके भी अन्दर फौजी बनने की इच्छा और अधिक तीव्र हो जाती थी। दिवान सिंह दानु सन् 1943 में अपने सैनिक बनने के सपने को पूरा करने के लिए, 18 वर्ष की आयु होते ही, अपने गाँव पुरदम से पैदल रानीखेत को चल दिए। उनके गाँव से रानीखेत जाने में लगभग चार या पाँच दिन का समय लग जाता था। पैदल चलते हुए मार्ग में अनेक प्रकार की कठिनाइयाँ, कही जंगल में हिंसक पशु बाघ-भालू आदी का भय, कही भूख लगने पर भोजन का उपलब्ध न होना, रात गुजारने के लिए किही बसेरा न मिलना तो कहीं अचानक ही प्रकृति की आपदा का आ जाना। अपनी धुन का पक्का, किशोर वय का साहसी युवक दिवान सिंह दानु मार्ग की सारी कठिनाइयों से संधर्ष करता हुआ, रानीखेत कैंट में पहुँच गया। पहाड़ की मिट्टी से जुड़ा हुआ, चीड़-बांज-बुरांस आदी के जंगल के वृक्षों के मध्य बहती वायु में सांस लिया हुआ और पहाड़ के डांसी पत्थर जैसे शक्तिशाली शरीर का दिवान सिंह दानु सेना में 4 मार्च, 1943 के दिन भर्ती हो गया था।
रानीखेत छावनी में सेना का प्रशिक्षण सत्र पूरा किया। प्रशिक्षण सत्र पूरा करने के पश्चात् दिवान सिंह दानु को चार कुमाउं रेजिमेंट में स्थानांतरण कर दिया। दिवान सिंह दानु चार कुमाउं की डेल्टा कम्पनी में नियुक्त हो गया। कुमाउं रेजिमेंट का सिपाही बनने पर दिवान सिंह दानु अपना परम सौभग्य समझते था। वह सेना में अनेक प्रकार के शस्त्र चलाने में वह निपुणता प्राप्त कर चुका था। खासकर वह ब्रेन गन चलाने में सिद्धहस्त था। जब कहीं ब्रेन गन चलाने की आवश्यकता होती तो सिपाही दिवान सिंह दानु को योग्य समझते हुए इसका उत्तरदायित्व दिया जाता था।
दिवान सिंह दानु चार कुमाउं की डेल्टा कम्पनी, 11 प्लाटून के सैक्शन एक के कुशल ब्रेन गनर, साहसी तथा आज्ञाकारी सिपाही बन चुका था। अवकाश मिलने पर वह अपने घर माँ-बाप और भाई-बहनों की देखभाल के लिए छुट्ठी में घर आते रहता था। इस मध्य उसके माता-पिता ने उनकी शादी निकट गाँव की खिमुली देवी से कर दी थी। दिवान सिंह दानु अपनी सेना की नौकरी कर्तव्य परायणता, निष्ठा के साथ कर रहे था। और अपने परिवार की भी उचित देखभाल कर रहे था। शादी के पश्चात् वह मात्र एक बार अपने घर आया था। घर से वापस अपनी यूनिट में पहुँने के पश्चात् 22 अक्टूबर, 1947 को पाकिस्तान के कबायलियों ने अचानक ही जम्मू-कश्मीर को अपने अधिकार में लेने के लिए आक्रमण कर दिया।
पाकिस्तानी कबायली कश्मीर की जनता के मध्य भयंकर लूट-पाट, अत्याचार करते हुए, महिलाओं के साथ बलात्कार करते हुए श्रीनगर हवाई अड्डे को कब्जाने के लिए आगे बड़ रहे थे। 3 नवंबर 1947 के दिन प्रातः सूर्य की किरणें धरती में पड़ने से पहले चार कुमाउं की डेल्टा कम्पनी हवाई अड्डे की रक्षा के लिए बड़गाँव में आ चुकी थी और दिन के 11 बजे तक शत्रुओं के विरुद्ध मोर्चा संभाल लिया था। डेल्टा कम्पनी का काम पाकिस्तानी कबायलियों को उत्तर दिशा से रोकना और वहाँ से खदेड़ना था। सेना की दो अन्य टुकड़ियाँ दूसरी दिशा में तैनात हो गयीभारतीय सेना की हवाई अड्डे की सुरक्षा के लिए तैनाती की सूचना पाकिस्तानियों को मिल चुकी थी। पाकिस्तानी किसी प्रकार की हरकत नही कर रहे थे। चारों ओर शाँति का वातावरण था। यह पाकिस्तानियों की भारतीय सेना को धोखा देने की एक चाल थी। हवाई अड्डे की रक्षा के लिए सेना की दो टुकड़ियों को लगभग दो बजे श्रीनगर वापस बुला लिया गया था और मेजर सोमनाथ शर्मा की डेल्टा कम्पनी को तीन बजे तक रुकने का आदेश मिला था।
तीन बजे के लगभग 500 से अधिक पाकिस्तानियों ने चार कुमाउं की डेल्टा कम्पनी के 55 सैनिकों को तीन दिशाओं से घेर लिया था। और वह मोर्टार से डेल्टा कम्पनी के जवानों के उपर भारी गोलाबारी करने लगे। डेल्टा कम्पनी के जांबाज जवान भी अपने मोर्चों से डटकर पाकिस्तानियों की गोलाबारी का उत्तर देे रहे थे। डेल्टा कंपनी के जवानों का संख्या बल पाकिस्तानियों के अनुपात में बहुत कम था। लेकिन 500 से अधिक पाकिस्तानियों के समक्ष डेल्टा कम्पनी केमात्र 55 जवान भारी पड़ रहे थे। श्रीनगर हवाई अड्डे की रक्षा करते हुए, अपना बलिदान देते हुए चार कुमाउं की डेल्टा कम्पनी के जवानों की संख्याँ कम होते जा रही थी। लेकिन वह अपना बलिदान देकर पाकिस्तानियों को आगे नही बड़ने दे रहे थे। मेजर सोमनाथ शर्मा अपने जवानों का साहस और उत्साह बड़ा रहे थे। सिपाही दिवान सिंह दानु अपनी ब्रेन गन से सटीक फायर करते हुए पाकिस्तानियों को मृत्यु के द्वार पहुँचा रहा था। मेजर सोमनाथ शर्मा अपने प्लास्टर चड़े हाथ से स्वयं जवानों को एमुनेशन से भरे मैंगजिन पहुँचा रहे थे। साथ ही जवानों को संबोधित कर रहे थे, “मेरे शेर दिल जवानों, आज वह दिन आ गया है जिस दिन के लिए हम फौज में भर्ती हुए हैं। दुश्मन को आगे नही बड़ने देना है, हमने दुश्मनों के सामने पहाड़ की तरह डटे रहना है।” सिपाही दिवान सिंह दानु जब अपने कम्पनी कमांडर की जोश से भर देने वाली बातें सुनता तो उसके शरीर में नई उर्जा के साथ शक्ति उत्पन्न हो जाती थी। नई उर्जा का संचार हो जाता था। उसके हाथ ब्रेन गन को और अधिक कशकर पकड़ लेते थे। दिवान सिंह दानु अपनी ब्रेन गन से पाकिस्तानियों के उपर फायर करते हुए उनकों मौत के घाट उतार रहा था। दिवान सिंह दानु ने लगभग 15 पाकिस्तानियों को मृत्यु के द्वार पहुँचा दिया था। मेजर सोमनाथ शर्मा अपने प्रत्येक जवान के पास जाकर उसका उत्साह बड़ा रहे थे। पाकिस्तानी संख्या बल में अधिक होते हुए भी एक इँच आगे नही बड़ पा रहे थे। चार कुमाउं की डेल्टा कम्पनी ने पाकिस्तानियों को घुटनों में ला दिया था।
मेजर सोमनाथ शर्मा के युद्ध कौशल, दक्ष नेतृत्व क्षमता तथा सिपाही दिवान सिंह दानु जैसे बहादुर व साहसी जवानों के समक्ष लगभग 200 पाकिस्तानी ढेर हो चुके थे। लेकिन डेल्टा कम्पनी के जवान के पास एमुनेशन समाप्त होते जा रहा था। साथ ही अनेक जवान जवान शहीद होते जा रहे थे। सिपाही दिवान सिंह दानु अपनी ब्रेन गन से दुश्मन के उपर आग के गोले बरसा रहे थे। उनका कंधा दुश्मन की गोली लगने के कारण घायल हो चुका था। घायल होने व खून से लथपथ होने के बाबजूद वह दुश्मन के उपर अपनी ब्रेन गन से फायर करते जा रहा था। वीर, बहादुर, साहसी पर्वत पुत्र सिपाही दिवान सिंह दानु और दुश्मनों के मध्य बहुत कम दूरी का अन्तर था। दुश्मन ने सिपाही दिवान सिंह दानु को तीन दिशाओं से घेर लिया था। दुश्मन की गोलियाँ लगने से सिपाही दिवान सिंह दानु का शरीर छलनी हो गया था। और अंतिम सांस चलने तक उनकी अंगुलियाँ भी ब्रेन गन के टाईगर में चलते रही। अंत में वह योद्धा 3 नवंबर 1947 के दिन वीरगति को प्राप्त हो गया।
3 नवंबर सन् 1947 का दिन भारत की सेना की वीरता, पराक्रम और शौर्य की गाथा में इतिहास बन गया। इस युद्ध में चार कुमाउं की डेल्टा कंपनी के 55 जवान अपने कम्पनी कमांडर मेजर सोमनाथ शर्मा सहीत, 500 से अधिक पाकिस्तानियों का रास्ता रोककर, 200 से अधिक पाकिस्तानियों को मौत के घाट उतारकर,़ श्रीनगर हवाई अड्डे की रक्षा करते हुए अनेक जवान वीरगति को प्राप्त हो गए थे। बड़गाँव के युद्ध में डेल्टा कम्पनी के योद्धाओं की बहुत कम संख्या होते हुए भी छः घंटे तक शत्रुओं को रोके रखा, उन पराक्रमी जवानों की वीरता से ही श्रीनगर का हवाई अड्डा सुरक्षित रहा। बाद में भारतीय सेना के सहायक दस्ते, चार कुमाउं के डेल्टा कम्पनी की सहायता के लिए पहुँच गए थे। मेजर सोमनाथ शर्मा भी 3 नवंबर 1947 के दिन वीरगति को प्राप्त हो गए थे। उनको उच्चकोटी की शूरवीरता, त्याग और बलिदान के लिए, भारत की सेना का सर्वोच्च सैन्य अलंकरण “परमवीर चक्र” (मरणोपरांत) दिया गया। और वीर पराक्रमी, पर्वत-पुत्र और देश के लिए स्वयं का बलिदान करने वाले सिवाही दिवान सिंह दानु को “महावीर चक्र” (मरणोपरांत) दिया गया।
सिपाही दिवान सिंह दानु जिला अल्मोड़ा (वर्तमान में जिला पिथौरागढ़) के दूर-दुर्गम क्षेत्र मुनस्यारी के गाँव पुरदम का निवासी था। उसके जिला मुख्यालय अल्मोड़ा से पैदल पुरदम गाँव जाने में लगभग चार दिन लग जाते थे। क्योंकि उन दिनों अल्मोड़ा तक ही सड़क बनी हुई थी। अल्मोड़ा से आगे पुरदम गाँव तक पैदल जाना पड़ता था। अतः सिपाही दिवान सिंह दानु के गाँव पुरदम में दिवान सिंह दानु के वीरगति प्राप्त होने का समाचार मिलने में समय अधिक लग गया था। सिपाही दिवान सिंह दानु के वीरगति प्राप्त होने पर उसके परिजनों को अत्यधिक दुःख हआ। दिवान सिंह दानु अपने परिवार के भरण-पोषण के सहारे थे। परिवार में कोई शिक्षित या उचित मार्ग दर्शन देने वाला कोई नही था। उनके परिवार में माँ-बाप सीधे-सरल स्वभाव तथा भाई-बहन बहुत छोटे व मासूम थे। उनको ‘महावीर चक्र‘ के बारे में, उसके मिलने से मिलने वाली सुविधाओं की कुछ जानकारी नही थी।
तत्कालीन देश के प्रथम प्रधनमंत्री जवाहर लाल नेहरु तथा उस समय के सेना अघ्यक्ष ने सिपाही दिवान सिंह दानु के वीरगति प्राप्त होने के पश्चात् पिता उमेद सिंह को संवेदना पत्र भेजा था। महावीर चक्र विजेता शहीद सिपाही दिवान सिंह दानु के पिता की पेंशन लग गई थी। लेकिन ‘महावीर चक्र’ प्राप्त करने वाले शहीद के परिवार को मिलने वाली अनेक सुविधाओं से वह वंचित रहे। मेजर सोमनाथ शर्मा तथा सिपाही दिवान सिंह दानु की युद्ध भूमी में वीर गति प्राप्त करते समय एक समान उम्र थी, मात्र 24 वर्ष। सिपाही दिवान सिंह दानू व उसकी पत्नी खिमुली देवी की कोई संतान नही थी। एक महावीर चक्र विजेता शहीद की विधवा को मिलने वाली आर्थिक व अन्य सुविधाओं की जानकारियों के अभाव में, खिमुली देवी के माँ-बाप ने शहीद के परिवार से नाता तोड़कर उसकी अन्यत्र दूसरे गाँव में दूसरी शादी कर दी थी। महावीर चक्र विजेता शहीद सिपाही दिवान सिंह दानु के माता- पिता व मासूम भाई-बहन बेबस रह गए।
द्वितीय सर्वोच्च सैन्य अलंकरण ‘महावीर चक्र’ (मरणोपरांत) प्राप्त सिपाही दिवान सिंह दानु के पाकिस्तानियों के विरुद्ध बड़गाँव युद्ध में वीरगति होने के पश्चात् शासन ने 20 एकड़ भूमी व अनेक सुविधायें देने की घोषणायें की थी। लेकिन वह घोषणायें धरातल में क्रियान्वयन नही हुई। 62 वर्ष के पश्चात् सन् 2009 में उत्तराखण्ड के माननीय राज्यपाल द्वारा, बिर्थी के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय का नाम ‘महावीर चक्र विजेता, शहीद दिवान सिंह दान’ु के नाम किया गया। वर्तमान में यह विद्यालय उन्नत होकर “महावीर चक्र विजेता, सिपाही दिवान सिंह दानु राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय” के नाम से जाना जाता है।
बिर्थी गाँव निवासी व सेना के पूर्व सूबेदार मेजर श्री किशन सिंह बृथ्वाल, महावीर चक्र विजेता सिपाही दिवान सिंह दानु राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में सन् 2013 से लेकर 2014 तक अभिवाहक संघ के अध्यक्ष रहने के मध्य, उनके मस्तिष्क में एक दूरदर्शी और विवेकपूर्ण विचार आया कि मुनस्यारी क्षेत्र के इस महान योद्धा महावीर चक्र विजेता सिपाही दिवान सिंह दानु की प्रतिमा विद्यालय के प्रांगण में स्थापित हो। श्री रमेश सिंह बृथ्वाल, श्री जगत सिंह बृथ्वाल, स्वर्गीय सुन्दर सिंह राठौर तथा श्री देव सिंह बृथ्वाल (पूर्व प्रधानाचार्य) इन सभी ने उनके इस विचार का स्वागत किया। बिर्थी क्षेत्र के प्रबुद्ध व जागरुक जनों ने धन एकत्र कर, महावीर चक्र विजेता शहीद सिपाही दिवान सिंह दानु की प्रतिमा को 03 नवंबर 2023 को विद्यालय में उनकी 76 वीं पुण्यतिथि पर स्थापित किया गया।
संदर्भः लेखक स्वयं बिर्थी गाँव में गया, सूबेदार मेजर किशन सिंह बृथ्वाल जी से मिला तथा उनके साथ पुरदम गाँव में महावीर चक्र विजेता, शहीद सिपाही दिवान सिंह दानु के छोटे भाई श्री पान सिंह दानु व उनके भतीजे तेज सिंह दानु से मिला। उनसे मिलकर महावीर चक्र विजेता, शहीद सिपाही दिवान सिंह दानु से अनेक जानकारियाँ प्राप्त की।