विवेकानंद माथने
शिक्षा क्षेत्र में विदेशी संस्थानों और कंपनियों के प्रवेश ने शिक्षा बहुत महंगी कर दी है। प्रतिस्पर्धा में टिकने के नामपर सरकारी संस्थानों ने भी शुल्क बढा दिये है। अब आर्थिक दृष्टिसे कमजोर परिवार के छात्रों के लिये ऐसी संस्थानों में पढना मुश्किल होते जा रहा है। लाखों छात्रों को उच्च शिक्षा से वंचित होना पड रहा है। अपने सपने पूरे करने के लिये उन्हें संपत्ति बेचकर या बैंक से कर्ज लेकर ही पढना संभव है। बैंकों के बढते ब्याज दरों नें छात्रों की मुश्किले और बढा दी है।
भारतीय रिझर्व बैंक (आरबीआई) ने मई 2020 से फरवरी 2023 तक रेपो रेट 2.5 प्रतिशत से बढा दिया है। मई 2020 में रेपो रेट 4 प्रतिशत था, वह फरवरी 2023 को 6.5 प्रतिशत किया गया है। रेपो रेट बढते ही बैंकों ने भी उसी अनुपात में ब्याज दर बढा दिये है। सभी प्रकारके पर्सनल लोन पर सभी बैंको की ब्याज दरें लगभग 1 से 2 प्रतिशत से बढी है।
भारतीय रिझर्व बैंक निर्धारित ब्याज दर पर बैंकों को राशि उधार देती है। उस ब्याज दर को रेपो रेट कहते है। बाजार में मुद्रा का प्रवाह नियंत्रित करने के लिये आरबीआई समय समय पर रेपो रेट की समीक्षा कर रेपो रेट घटाती बढाती है या कायम रखती है। उसके आधार पर बैंको के ब्याज दरों में भी बदलाव होता है। रेपो रेट में बदलाव से धन वापसी की कुल राशि और ईएमआई (समान मासिक किश्तें) में बदलाव होता है।
वैसे बिना किसी विशेष मामले के बैंक लोन पर ईएमआई और कुल धन वापसी निकालना मुश्किल काम है। बैंक, मूल कर्ज राशि, कर्ज प्रकार और मामले के अनुसार बैंक कर्ज पर ब्याज दर अलग अलग होता है। भारत में सामान्यत: शिक्षा कर्ज पर पाठ्यक्रम अवधि और एक साल तक साधारण ब्याज दर और धन वापसी शुरु होने के बाद चक्रवृद्धी ब्याज लगाया जाता है।
मान लीजिये एक छात्र को उच्च शिक्षा हेतु दो साल का पाठ्यक्रम और एक साल मोरेटोरियम अवधि (भुगतान पर अस्थायी रोक) के लिये बैंक से कमसे कम 9 प्रतिशत ब्याज दर से दस साल अवधि के लिये दस लाख रुपये कर्ज लेने पर उसे कुल 15.79 लाख रुपये लौटाने होंगे। और प्रतिमाह 11 हजार 960 रुपयें ईएमआई देनी होगी। बैंकों की बढती ब्याज दरों के साथ कुल राशि भी उसी अनुपात में लौटानी होगी।
रेपो रेट बढने के कारण ब्याज दर 1 से 2 प्रतिशत बढा है। अब 11 प्रतिशत ब्याज दर से 10 साल अवधि के लिये 10 लाख रुपयें पर उसे 17.67 लाख रुपयें लौटाने होंगे। और प्रतिमाह 13 हजार 383 रुपये ईएमआई देनी होगी। बैंको के ब्याज दरों में 2 प्रतिशत बढोतरी के कारण छात्र को 1.88 लाख रुपये ज्यादा लौटाने होंगे। अर्थात रेपो रेट बढने के कारण छात्र पर कम से कम 1.88 लाख रुपयों का अतिरिक्त बोझ बढा है। और प्रतिमाह 1423 रुपये ईएमआई ज्यादा देनी होगी।
भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार वित्तीय वर्ष 2022-23 के दौरान कुल 17.67 हजार करोड रुपये शिक्षा कर्ज वितरित किया गया है। जो पिछले साल 16.19 हजार करोड रुपये वितरित किया गया था। वित्तीय वर्ष 2022-23 में शिक्षा कर्ज की बकाया राशि पिछले साल की तुलना में 17 प्रतिशत बढकर 96.85 हजार करोड रुपये हो गई है। जो पिछले साल 82.72 हजार करोड रुपये थी। मोटे तौर पर यह कह सकते है कि रेपो रेट बढने से बैंको के ब्याज दरों में हुई बढोतरी के कारण छात्रों को कुल बकाया राशि पर लगभग 18 हजार करोड रुपये ज्यादा लौटाने होंगे।
सरकार की गलत नीतियों के कारण शिक्षा महंगी हुई है। पहले सरकार ने शिक्षा क्षेत्र में विदेशी संस्थानों और कंपनियों प्रवेश दिया। उन्हें मनमाना शुल्क बढाने की छूट दी। प्रतिस्पर्धा में टिकने के नामपर सरकारी, नीम सरकारी और निजी संस्थाओं के भी शुल्क बढा दिये गये। बैंको से लोन देने की व्यवस्था की और ब्याज दर बढा दिये गये। सबको शिक्षा देना सरकार की जिम्मेदारी है, लेकिन सरकारने उसे लूट का क्षेत्र बना दिया। गरीबों को शिक्षा से दूर रखा जा रहा है।
रेपो रेट बढने से शिक्षा, गृह, वाहन आदि सभी प्रकार के पर्सनल लोन पर ब्याज दर बढे है। बकाया पर्सनल लोन अगस्त 2022 तक 36.47 लाख करोड रुपये था, अब वह 47.70 लाख करोड रुपये तक पहुंचा है। भारत में पर्सनल लोन की ब्याज दरें 9.5 प्रतिशत से 24 प्रतिशत तक है। रेपो रेट 2.5 प्रतिशत बढने से बैंको के ब्याज दर लगभग उसी अनुपात में बढे है और सभी पर्सनल कर्जदार जनता पर हरसाल लाखों करोड रुपयों का बोजा बढा है। यह राशि लगभग 9 लाख करोड़ रुपयें है। उसका सही हिसाब आरबीआई ही बता पायेगी।
माना जाता है कि रेपो रेट महंगाई को नियंत्रित करने का काम करती है। रेपो रेट कम करने से ब्याज दर कम हो जाते है। कर्ज सस्ता होता है और ईएमआई भी कम होती है। जिससे बाजार में मुद्रा का प्रवाह बढ जाता है। उल्टा रेपो रेट बढाने से ब्याज दर बढ जाते है। कर्ज महंगा होता है और ईएमआई में बढोत्तरी होती है। कर्ज महंगा होने से लोग कर्ज कम लेते है। बाजार में मुद्रा का प्रवाह कम होता है। इससे वस्तुओं की मांग कम होती है और महंगाई घटती है।
महंगाई नियंत्रित करने के नामपर भारतीय रिझर्व बैंक ने रेपो रेट बढा दिया। जिससे शिक्षा, मकान, वाहन आदि सभी पर्सनल लोन महंगे हो गये। ईएमआई में बढोत्तरी हुई। लेकिन पिछले साल की तुलना में सभी पर्सनल लोन का वितरण ज्यादा हुआ है। बाजार में नाही मुद्रा का प्रवाह कम हुआ और नाही महंगाई कम हुई। कर्जदारों की संख्या और राशि बढती ही जा रही है। याने रेपो रेट बढने के कारण बाजार में मुद्रा प्रवाह में कमी होने और महंगाई कम करने का दावा झूठा साबित हुआ।
महंगाई को नियंत्रित करना सरकार की जिम्मेदारी है। महंगाई नियंत्रित रखने के लिये कई उपाय किये जा सकते है। पेट्रोल, डिजल, गैस आदि ईंधन के दाम कम करना, रेपो रेट बढाकर बाजार में मुद्रा प्रवाह कम करना, आवश्यक वस्तुओं का भांडारण रोकने के लिये आवश्यक वस्तु अधिनियम का कड़ाई से पालन कराना, जमाखोरी को नियंत्रित करना, कृषि और औद्योगिक उत्पादनों के दामों को नियंत्रित करना और वस्तुओं के आयात निर्यात का संतुलन बनाये रखना आदि कई उपाय किये जा सकते है।
लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में पेट्रोल, डिजल, गैस आदि ईंधन की कीमतें कम रहने के बावजूद पेट्रोल, डिजल के दाम कम नही हुये। कृषि उत्पादों के भंडारण के लिये आधुनिक कारपोरेट गोडाऊन ‘साइलो’ बनाना जारी है ताकि आवश्यक वस्तु अधिनियम हटाकर कारपोरेट कंपनियों को अमर्याद संग्रहण के अधिकार दिया जा सके। औद्योगिक उत्पादनों के दाम पर कोई नियंत्रण नही है। लेकिन महंगाई नियंत्रण के नामपर किसानों के फसलों के दाम बढते ही सरकार आयात निर्यात नीति में हस्तक्षेप कर फसलों के दाम गिरा देती है और रेपो रेट बढाकर कर्ज लेने के लिये मजबूर लोगों को लुटती है।
वास्तविकत: महंगाई सरकार की गलत नीतियों का परिणाम है। लेकिन महंगाई कम करके जनता को राहत पहुंचाने के बजाय सरकार आम जनता की जेब से पैसा निकालने का और कारपोरेट घरानों का कर्ज माफ करके उन्हें लाभ पहुंचाने का काम करती है। संसद में दी गई जानकारी के अनुसार वर्ष 2014-15 से अबतक बैंकों ने 14.56 लाख करोड रुपये फंसा हुआ कर्ज (एनपीए) माफ कर दिया है। जिसमें 7.41 लाख करोड रुपयें बडे उद्योग घरानों का है।
वैसे बैंक अपने आपमें एक लूट की व्यवस्था है। उनकी नीति साहूकारों से अलग नही है। बैंक सरकार मान्य साहूकारी का नया स्वरूप है। जो जरुरतमंद लोगोंको लूटकर अमीरों को लाभ पहुंचाने के लिये बनी है। देशी बैंको के साथ अब विदेशी बैंको की साहूकारी शुरु हो चुकी है। कभी इस देश में साहूकारी के विरुद्ध आंदोलन हुआ और साहूकारी पर निर्बंध लादे गये। अब बैंको की साहूकारी का विरोध जरुरी है। छात्रों को ‘सस्ती शिक्षा, सस्ता कर्ज’ और ‘नौकरी नही तो कर्ज वापसी नही’ के नारे के साथ सबको समान और सस्ती शिक्षा की मांग करनी चाहिये।
विवेकानंद माथने
संयोजक, राष्ट्रीय किसान समन्वय समिति
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