पूरन बिष्ट
सिलक्यारा सुरंग हादसे का रंगारंग समापन हो गया। 17 दिन जीवन की जंग लड़ चुके मजदूरों की जीत उनकी जीवटता साबित करती है। अपने जीवटपन से उन्होंने अपनी जान के साथ, इस हादसे के जिम्मेदार लोगों की नाक भी बचा ली। लेकिन हादसे के अपराधियों को छोड़ा कैसे जा सकता है। देहरादून के सीएम आवास पर समझ में नहीं आने वाले पहाड़ी गीतों के बोलों पर जबरन नचाए जा रहे बिहार, झारखंड, यूपी समेत आठ राज्यों के मजदूरों की व्यथा, उनकी बॉडी लेंग्वेज बयां कर रही थीं और तमाशबीन, सरकार बहादुर को खुश करने के जतन में जुटे हुए थे।
हादसे की मुख्य घटना निपट गई। सवाल है, अब क्या होगा। क्या यही सुरंग टल्ले डालकर दोबारा बनाई जाएगी। यदि ऐसा हुआ तो दोबारा हादसा न हो, इसकी गारंटी कौन देगा?
यह भी जान लें कि, सुरंग हादसे की जितनी भी जांचें करा ली जाएं, सुरंग को बनाने वाली कंपनी का बाल भी बांका नहीं होने वाला। बहुत संभव है कि, मजदूरों की जान बचाने में सुरंग को जो नुकसान पहुंचा है, सरकार, कंपनी को पैसा चुकाकर उसकी भरपाई कर दे।
आज के अखबारों में इस हादसे के कारणों पर सुरंग बनाने वाली कंपनी के सीनियर इंजीनियर प्रदीप नेगी का बयान छपा है। नेगी ने कहा है कि, हादसे का कारण लोड फेल्योर है, सुरंग निर्माण के लिए जो सामग्री लगाई थी, वह मलबे का भार सहन नहीं कर पाई। दूसरा महत्वपूर्ण बयान कंपनी के सुरक्षा प्रबंधक राहुल तिवारी का है। तिवारी ने कहा कि, परियोजना की डीपीआर में सुरंग के जिस हिस्से को हार्ड रॉक बताया गया था, वहां भुरभुरी मिटटी निकली। हालांकि उन्होंने सुरंग प्रोजेक्ट की भूगर्भ रिपोर्ट बनाने वाली संस्था के नाम का खुलासा नहीं किया। बहुत संभव है कि, इस संस्था ने भूगर्भविद स्व. खडग सिंह वल्दिया की किताब- हाई डैम्स इन हिमालया पढ़ने की जहमत तक नहीं उठाई, जिसमें उन्होंने सिलक्यारा के इस इलाके के भूगर्भ को बेहद कमजोर और संवेदनशील बताया था। सुरंग बना रही कंपनी के ही एक अधिकारी का यह बयान भी आया कि, भूगर्भिक रिपोर्ट तैयार करने वाली संस्था ने सुरंग के मुहाने वाली चटटानोें की ही जांच कर रिपोर्ट तैयार कर दी। सवा चार किमी लंबी इस टनल के अंदरूनी हिस्सों की जांच ही नहीं हुई।
कहने का मतलब यह है कि, सुरंग हादसे के असल कारणों का खुलासा, कंपनी के कारकुन कर चुके हैं, इसलिए इन लापरवाहियों के लिए जिम्मेदार लोगों को, जांच की औपचारिकताएं पूरी किए बगैर प्राथमिक आधार पर जेल में डालें। साथ ही हादसे का दोष दूसरों पर डालने वाली कंपनी पर इस बात के लिए कार्रवाई हो कि, उसने मजदूरों की सुरक्षा के प्राथमिक इंतजाम तक नहीं किए।
अंत में, चारधाम सड़क परियोजना में निर्माण के मानकों का उल्लंघन करने देकर मोटा कमीशन खाने वालों को कार्रवाई के दायरे से बाहर रखा जाए, क्योंकि, इन पर कार्रवाई करने की औकात किसी के पास नहीं है।