डॉ योगेश धस्माना
उत्तराखंड में रामलीला का शुरुवाती स्वरूप मथुरा , बनारस , मुरादाबाद , बिजनौर से कीर्तन और नृत्य मंडलियों को बुलाकर , रामलीला और कृष्ण लीलाओं का मंचन किया जाता था । 1860- 1899 तक गढ़वाल कुमाऊ में रामलीलाओं का इसी तरह मंचन किया जाता रहा । कुमाऊ में 1860 में देवीदत्त जोशी ने बनारस और मुरादाबाद से रामलीला मंचन की टोलियों को बुलाकर इसकी शुरुवात की थी । वहीं गढ़वाल में 1820 में यात्री लेखक मूरक्राफ्ट ने देवप्रयाग क्षेत्र के भ्रमण में रामलीला का उल्लेख किया था । संभवतः यात्रा मार्ग के प्रमुख पड़ाव के कारण देवप्रयाग में कला , साहित्य और धार्मिक यात्री आया जाया करते थे । इन्हीं के प्रयासों से देवप्रयाग में रामलीला मंचित किए जाने का उल्लेख मिलता है ।
गढ़वाली पत्र के संपादक बी.डी. चंदोला जो 1895 में देहरादून जाके बस गए थे , तब उन्होंने 1897 में देहरादून और पौड़ी में स्वांग आधारित रामलीलाओं का उल्लेख किया था । किंतु डॉ भोलादत्त काला (1898-1925) के लेख से यह स्पष्ट सूचना मिलती है कि 1906 से पौड़ी की आधुनिक रामलीलाओं का मंचन शुरू हुआ था (गढ़वाली मासिक 1910) ।
इस आयोजन में वकील तारा दत्त गैरोला ,पूर्ण त्रिपाठी , तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर चंद्रदुत्त पांडे , गढ़वाल जिला बोर्ड के अध्यक्ष , बृजमोहन चंदोला , सचिव सुरेंद्र सिंह बर्तवाल (1923- 1952 )और कलेक्ट्रेट के कार्यालय अध्यक्ष नरेंद्र सिंह रावत प्रमुख थे । मुख्य अतिथि के रूप में कला प्रेमी डिप्टी कमिश्नर वी.ए. स्टोवेल कलाकारों का उत्साह वर्धन करते थे । पौड़ी रामलीला सामाजिक समरसता के लिए प्रसिद्ध रही है । इसमें हिंदू , मुस्लिम और ईसाई समुदाय की सक्रिय भागीदारी रही है । मोहम्मद सद्दीक , जब्बार , इकराम अली , ज्ञान विक्टर , छोटे याकूब , मुद्दी भाई , और हुसैन जैसे अनेक लोग रामलीला के सूत्र धार थे । रामलीला का परदा खींचने में आलम , जालम की जोड़ी आकाशवाणी करने में मैहताब सिंह जी का अंदाज , रावण की भोमिका में दया सागर धस्माना , पीतांबर सेमवालन, जगदम्बा पंत , महिला पत्रों की भूमिका में पूरन चंद्र थपलियाल का यादगार अभिनय आज भी दर्शकों पर छाया हुआ है ।
आज 21वी सदी की रामलीला को आकर्षक बनाने में रामलीला कमिटी के संग्रक्षक 88 वर्षीय , दल्लू बाबू , निर्देशन में गौरी शंकर थपलियाल , संगीत निर्देशन में टिन्नू रावत , मनोज कुमार मंजुल , आशुतोष नेगी और रावण की भूमिका में जगत किशोर बर्थवाल का अभिनय आशा की किरण जगाता है । विगत 20 वर्षों से महिला पात्राओं की भूमिकाएं स्वयं लड़कियों द्वारा निभाने के चलते रामलीला का आकर्षण पहले से अधिक बढ़ गया है । प्रकाश व्यवस्था और हवा में उड़ते हनुमान और कैलाश पर्वत जैसे आकर्षक सेट निर्माण से पौड़ी की रामलीला का वैभव फिर से स्थापित हो गया है ।