रेवती बिष्ट
कभी कोई घटना व्यक्ति की जिंदगी बदल देती है और हम समझने लगते हैं कि किस्मत का खेल है। बचपन में घटित ऐसी ही एक घटना ने शंभू को शमशेर बना दिया। पहाड़ों पर जाड़ों में अंगीठी सेकना परंपरा भी है और यह ठंड में जरूरी भी हो जाता है। पर अगर अंगीठी की गैस कमरे में बनी रहे तो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो जाती है। उस दिन भी शमशेर और उनकी बहन ने अंगीठी जलानी चाही तो भाई ने अंगीठी में मिट्टी तेल उडेल कर आग जलाई। आग एकदम से जल कर शंभू के मुंह तक पहुंच गई और उनको गले तक झुलसा दिया। दीदी ने जल्दी से पानी डाला तो फफोले पड़ गए। जब सभी लोग पहुंचे तो घरेलू उपचार के बाद अस्पताल जाना ही पड़ा। अस्पताल में भर्ती हुए और इलाज चलने लगा। उस समय शंभू प्राइमरी में पढ़ते होंगे। 6 माह लग गए इलाज कराने में। छोटी उम्र होने से घटना से दहशत हो गई पर दवाई चलती रही। तब श्री जंग बहादुर बिष्ट एम.पी. हुआ करते थे, उन्होंने मदद करते हुए अच्छे इलाज की पेशकश की। पड़ोस में आर्मी के कैप्टन थे जिन्होंने दवाई देकर सहायता की। बहुत समय तक गले पर पट्टी लगी रही जिससे घाव भी रह गया परंतु दवाई से काफी ठीक होता गया। बहुत समय बाद स्कूल जाने लगे पर बाल मन पर थोड़ा बहुत प्रभाव रह गया। लेकिन अन्य बच्चों से अपने को कमतर सोचने की भावना धीरे-धीरे कम होती गयी। पढ़ाई भी चलती रही और पहनावा भी नेता टाइप कुर्ता और स्वेटर बना गया। घर पर भी नेताजी कहलाने लगे। पलटन बाजार में रहते हुए इन्होंने हाईस्कूल, इंटर, स्टेनोग्राफी, बी.ए., बीएड बाद में एलएलबी व पीएचडी पूरी की। कॉलेज में प्रवेश लेने के बाद अध्यक्ष पद का चुनाव भी भारी बहुमत से जीतकर रिकार्ड कायम किया। एक बार किसी पंडित ने इनसे कह दिया कि हाई स्कूल से आगे नहीं कर पाओगे तब से ही शंभू ने ठान लिया की पूरी पढ़ाई करके ही रहूंगा और ज्योतिष शास्त्र पर विश्वास न करते हुए अपना संघर्ष करते रहे।
विद्यार्थी जीवन में दूसरों को टयूशन देकर खुद भी पढ़ाई करते रहे और पूरे जीवनपर्यन्त संघर्ष शील रहे. डा. खजान जी ने उनकी लगन देखकर ही उन्हें प्रेस भी दिलाई ताकी सबको रोजगार का अवसर मिल जाए। शमशेर कुमाऊं विश्वविद्यालय के लिए आंदोलनरत रहे और विश्वविद्यालय बन भी गया। शंभू से भी कहा गया कि आप उच्च पद पर आ जाओ पर इन्होंने मना करते हुए कहा कि जिसके लिए हमने आंदोलन किया उसी पद पर नहीं आ सकते हैं। उनके सादा जीवन उच्च विचार से भावी पीढ़ी बहुत प्रभावित रही। उनके संगठन उत्तराखंड संघर्ष वाहिनी में कई लोग नशा नहीं रोजगार दो, उत्तराखंड राज्य दो, चिपको आंदोलन आदि से जुड़े रहे। उत्तराखंड संघर्ष वाहिनी बाद में उत्तराखंड लोक वाहिनी कहलाने लगी। सुंदरलाल बहुगुणा, चंडी प्रसाद भट्ट, राधा बहन, बनावारी लाल शर्मा आदि उनके प्रेरक व सहयोगी रहे हैं। उन्होंने पुरस्कार के लिए कभी नहीं सोचा बस अपना संघर्ष करते रहे। सभी पार्टियों ने उन्हें अपनी पार्टी में शामिल करने की कोशिश की। मेहरा जी, केसी पंत जी, एनडी तिवारी जी, हेमवती नंदन बहुगुणा जी, सोबन सिंह जीना जी सभी ने आग्रह किया पर शंभू किसी भी पार्टी में नहीं गये। वे अपने ही संगठन में रहते हुए कार्यरत रहे। विरोधियों का विरोध भी वो विचारों से ही करते थे। अन्याय करने वालों से भी क्रोध के बजाय विचारों से विरोध करते थे। वे गोरकी व गांधी के विचारों से भी प्रभावित रहे। उन्हें कई बार आंदोलन में जेल भी जाना पड़ा। अपने स्वास्थ्य के प्रति सजगता नहीं रही। वे कार्य को ही पूजा मानकर चले और उसी में लगे रहे।
घर पर भी मित्रों का आना लगा रहता था। सभी का आदर सत्कार करना व परिवार की तरह देखभाल करना उनका स्वभाव था। गिर्दा तो आते रहते थे और संगठन की चर्चाएं भी होती थी. स्वामी अग्निवेश, राजीव, शेखर, षष्ठी पांडे, बसंत, खड़क सिंह, जगत, पी.सी., प्रदीप सभी का सहयोग आंदोलनों में रहता। शमशेर जी की माताजी व बहन समेत पूरा परिवार भी आंदोलनों में शामिल रहता। वे सब आंदोलन अब स्मृतियों में रह गए हैं। उनके साथ सभी यादें भी उभरती रहती हैं। उत्तराखंड राज्य भी बना पर जैसा सोचा था वैसा नहीं बना। आंदोलनों में संघर्ष करते हुए स्वास्थ्य से भी बहुत संघर्ष करते रहे पर संगठन में सेवारत रहे और सभी का मार्गदर्शन करते रहे। अपने चाचा पूर्व विधायक श्री जसवंत बिष्ट जी की तरह शमशेर बिष्ट जी भी अपना काम सारा छोड़कर लोगों की मदद करने चले जाते थे। पर अंततः शमशेर के अपने स्वास्थ्य ने इनका साथ न देकर सब छोड़ने के लिए विवश कर दिया और जीवन नैया नदी पार जाने के लिए खड़ी डोलती रह गई।
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बद्रीदत्त पालीवाल
स्व0 श्री बिष्ट जी को नजदीक से देखा है।।आज उनकी आत्मा स्वर्ग में है।। बहुत ही जीवट ब्यक्तित्व, उत्तराखंड आंदोलन के प्रेनेता।। शायद ही उन्होंने अथवा उनके परिवार ने उत्तराखंडी होने का प्रमाण पत्र प्राप्त करने की कोशिश की हो।। उत्तराखंड राज्य आंदोलन कारी प्रमाण पत्र भी नही लिया होगा।। उनके साथ पूरे उत्तराखंड मैं घर घर अलख जगाने वाले प्रमुख साथी श्री राजीव लोचन साह जी, श्री शेखर पाठक जी ,स्व0 गिर्दा एवम अन्य कई लोग अग्रिम पंक्ति में रहे।। उनका योगदान कभी भी भुलाया नहीं जा सकता।।मैंने कुमाऊं मंडल से अधिक उपरोक्त महानुभावो के सराहनीय योगदान के बारे मैं गढ़वाल मंडल मैं सुना और देखा है।।शमशेर दा को सत सत नमन।।उनकी स्मृति सदैव मानस पटल पर बनी रहेगी।।