विजया सती
यूरोप की इस विख्यात पर्यटन नगरी बुदापैश्त में हम सिर्फ़ पर्यटक नहीं थे. प्रसिद्ध विश्वविद्यालय में पांच सेमेस्टर पढ़ाते हुए, शहर में रहना कई मायनों में भीतर बाहर समृद्ध कर देने वाला अनुभव था.
इस अनुभव का एक हिस्सा बुदापैश्त में मिले ऐसे कवि, कथाकार, कलाकार और विशिष्ट व्यक्तित्वों से जुड़ा है, जो कई बरस बीत जाने के बाद भी – भुलाए न जा सकें!
पेतोफी शांदोर एक ऐसे ही कवि का नाम है !
क्रान्ति और प्रेम को जीवन में एक समान महत्व देने वाले पेतोफी शांदोर ने अपने देश में 1848 की क्रान्ति के दौरान इस प्रेरक राष्ट्रीय कविता को रचा – उठो हंगरी वासियों ! हम अब और अधिक गुलाम न रहेंगे !
वे हंगरी के राष्ट्रीय कवि के रूप में आदर से याद किए जाते हैं .
बंधन के खिलाफ लिखते हुए इन्हीं पेतोफी ने प्रेम, उसकी आकुलता और उसके एकाकीपन को भी शब्द दिए. अपनी प्रसिद्ध प्रेम कविता में वे नवविवाहिता पत्नी से प्रश्न करते हैं –
जब मैं न रहूँगा तब क्या जल्दी ही,
नया प्यार पाकर तुम मेरा नाम तक भुला दोगी?
1 जनवरी 1823 को जन्मा यह कवि 26 वर्ष की अल्प आयु में, देश प्रेम की खातिर कैसे प्राण खो बैठा, यह भी तय नहीं हो पाया. आधिकारिक रूप से पेतोफी का शव न मिलने के कारण उनकी मृत्यु अनुमानत: 31 जुलाई 1849 को समझी जाती है. माना जाता है कि या तो वे आज़ादी के उस युद्ध में मारे गए जिसमें अंतिम बार जीवित देखे गए या लापता होने के कुछ वर्ष बाद क्षय रोग से मरे या फिर आज़ादी की लड़ाई के बाद जो अठारह सौ हंगेरियन सैनिक साइबेरिया ले जाए गए, पेतोफी उनमें से एक थे.
जैसे देश के प्रति वैसे ही पत्नी के प्रति गहरे प्रेम और समर्पण में डूबे कवि के जीवन की त्रासदी विचलित कर देती है.
1846 में पारिवारिक विरोध के बावजूद उन्होंने यूलिया से विवाह किया था. पत्नी से प्रेम की जिस निष्ठा की उन्हें चाह थी, वह संभव न हुई. युद्ध के दौरान पेतोफी के लापता होने पर उनकी पत्नी ने शीघ्र ही पुनर्विवाह कर लिया. दूसरी ओर देश की 1848 की क्रान्ति को दबा दिया गया.
लेकिन पेतोफी के भावभरे हृदय में तो तरंगें थी, उन्होंने लिखा :
मैं वृक्ष बन जाना चाहता हूँ
यदि तुम उसका पुष्प बनो तो,
मैं पुष्प बन जाना चाहता हूँ
यदि तुम ओस बूँद बनो तो !
मैं ओस बूँद बन जाना चाहता हूँ
यदि तुम सूर्यकिरण बनो तो !
अंततः उनके उमड़ते हृदय को पहचान मिली. ताज़गी और स्फूर्ति से भरा पेतोफी का काव्य स्वर इतना लोकप्रिय हुआ कि 1940 में बोरिस पास्तरनाक ने रूसी भाषा में इनकी कविताओं का बहुप्रशंसित अनुवाद किया. देश और विदेश में पेतोफी के सम्मान का सिलसिला शुरू हुआ, आज केवल बुदापैश्त में ही पेतोफी शान्दोर के नाम पर ग्यारह सड़कें और चार चौक हैं. एक राष्ट्रीय रेडियो स्टेशन है और दुना नदी पर एक सुंदर पुल भी, जहां कवि की विशाल प्रतिमा स्थापित है. ऐसे कवि हैं पेतोफी जिनके लिए कहना ही होगा…..भुलाए न बने !
दुना नदी के तट से एक याद
दुना नदी के तट पर, गुमसुम-सी एक इमारत की दीवार पर लगे संग-ए-मरमर पर सुनहरे अक्षरों में अंकित था – इस मकान में 30 जनवरी 1913 को जन्म लिया – भारतीय पिता उमराव सिंह शेरगिल और हंगेरियन मां अंतोनिया की बेटी के रूप में चित्रकार अमृता शेरगिल ने !
अमृता सिख पिता और हंगेरियन मां की पहली संतान थी, वही अमृता शेरगिल बीसवीं सदी की महत्वपूर्ण चित्रकार के रूप में जानी गई. उनका आरंभिक जीवन बुदापैश्त में बीता, जहां ओपेरा गायिका मां और प्रख्यात इन्डोलोजिस्ट (भारतविद) मामा इरविन बकतय के संरक्षण में कला और संगीत के प्रति उनकी अभिरुचि को आकाश मिला.
पंजाब के प्रतिष्ठित मजीठिया परिवार से आने वाले पिता सरदार उमराव सिंह के पास गर्मियों में जब वे शिमला रहने आती, तो नौ वर्ष की आयु से ही अपनी बहन के साथ वहाँ संगीत प्रस्तुतियाँ देतीं.
पैतृक आवास गोरखपुर के पास के ग्रामीण परिवेश में रहते हुए उन्होंने भारतीय जीवन की गरीबी और हताशा के साथ-साथ नारी-जीवन के विषाद को विशेष रूप से नज़दीक से देखा, जो उनकी चित्रकला में बारम्बार अंकित होता रहा.
उनकी यह आत्मस्वीकृति बहुत मर्मस्पर्शी है कि जब मैं यूरोप में होती हूँ, तो भारतीय जीवन की स्मृतियाँ मुझे भारत खींच लाती हैं, जैसे मेरी कला का सूत्र भारत से गहरे जुड़ा है. उन्होंने किसी भी परम्परा का आंख मूँद कर अनुसरण और पश्चिम की नक़ल न करने का आग्रह सबके सामने रखा. अपनी कला में वे लगातार कई तरह के प्रयोग करती रही.
युवावस्था में विवाह के बाद वे पति के साथ लाहौर रहने आईं, जो अविभाजित भारत में कला-संस्कृति की हलचल से भरा शहर था. घर की ऊपरी मंजिल पर स्थित लाहौर के अपने स्टूडियो में दिन के प्राकृतिक उजाले में चित्र बनाना उन्हें सबसे अधिक पसंद था.
यह उनके जीवन का मूल्यवान दौर था, लेकिन इस प्रवास का सबसे दुखद पहलू यह रहा कि यहीं बहुत आकस्मिक रूप से, एक अधूरे कैनवास को छोड़ केवल अट्ठाईस वर्ष की उम्र में अमृता शेरगिल एक दूसरी ही यात्रा पर चल दीं. यह घटना 5 दिसंबर 1941 को घटी.
प्रतिभावान युवा बेटी की मृत्यु के शोक में डूबे माता-पिता की उपस्थिति में लाहौर में ही उनका अंतिम संस्कार हुआ. यही है कुल कथा एक युवा जीवन के अंत की.
लेकिन कला का अंत नहीं होता. कला स्मृतियों में जीवित रहती है. कला धरोहर के रूप में संचित रहती है. अमृता शेरगिल की स्मृतियाँ वर्षों बाद भी बनी हुई हैं – उनके सेल्फ पोर्ट्रेट, गाँव के दृश्य, युवतियां, दुल्हन, पहाड़ की स्त्रियां, विश्राम के चित्र, ब्रह्मचारी और मिट्टी के हाथी उसी स्मृति के प्रतिरूप हैं.
हंगरी के प्रेमचंद
गरीब, बेसहारा, किसान, मजदूर के दुःख-दर्द को शब्द देने वाले, प्रेमचंद सरीखे हंगरी के प्रसिद्ध उपन्यासकार और कहानीकार हैं मोरित्स जिग्मोंद.
उनका आरंभिक जीवन प्रेमचंद की ही तरह गाँव में बीता, उदास और एकाकी बचपन, परिवार से दूर.. वे कहते हैं – ‘मानो मैं इसलिए ही लेखक बन गया कि वे जख्म दिखाऊं जो मुझे सात से दस साल की उम्र तक लगे थे’ ..
हंगेरियन लोक साहित्य को एकत्रित करते हुए यात्राओं में उन्होंने हंगेरियन जीवन के विविध पक्ष देखे, ग्रामीण जीवन के गहन अनुभव हासिल किए, जो उनकी रचनाओं के स्रोत बने.
विवाह यंका से हुआ, दो बच्चे जीवित न रहे, दूसरे पुत्र की मृत्यु के बाद जिग्मोंद ने ‘सात पैसे’ कहानी लिखी, जिसका हंगेरियन साहित्य में आज भी विशेष महत्व है. विश्व की बहुत सी भाषाओं में अनूदित यह कहानी उनकी प्रतिनिधि कहानी बनी और वे साहित्य जगत में स्थापित हो गए.
उनका पहला कहानी संग्रह भी ‘सात पैसे’ नाम से ही छपा और वे पूरी तरह साहित्य को समर्पित हो गए. उन्होंने गाँव के आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक परिवर्तनों को शब्द दिए, वे गरीब जन के प्रतिनिधि लेखक बने.
मोरित्स ने नाटक लिखे, उपन्यास लिखे और लघु उपन्यास भी. ‘मौत तक अच्छे बने रहो’ उपन्यास एक तरह से उनका भावुक व्यक्तिगत आख्यान ही है, जिसमें गरीब परिवार का एक नेकदिल लड़का कठिन परिस्थितियों के बावज़ूद ईमानदार बना रहता है.
जीवन के अनवरत संघर्षों ने मोरित्स के निजी जीवन को तनावपूर्ण बना दिया. जो पत्नी उनका सतत संबल और प्रेरणा थी, उसके साथ सम्बन्ध इतने खराब हुए कि यंका ने आत्महत्या कर ली. मोरित्स के नारी पात्रों में उनकी पत्नी की छवि सहज ही पाई जा सकती है.
मोरित्स ने अभिनेत्री मारिया से विवाह किया, एक असफल विवाह. ‘जब तक प्यार ताज़ा है’ उपन्यास में उन्होंने विवाह की असफलता के कारणों का विश्लेषण किया.
मोरित्स का अनूठा उपन्यास है – अनाथ लड़की…यह परिचय में आई एक अनाथ लड़की की आपबीती है, उसके माध्यम से महानगर की समस्याओं, सर्वहारा वर्ग और समाज के हाशिए पर जीने वाले आवारा लोगों की स्थिति उजागर की. मोरित्स मानते हैं कि गरीबी में दुःख के साथ-साथ आशा, उमंग और प्रसन्नता भी सर्वहारा वर्ग के जीवन का हिस्सा है.
पत्रकार के रूप में जीवन शुरू करने वाले मोरित्स जिग्मोंद की रचनाओं का अनुवाद विश्व की सभी प्रमुख भाषाओं में हुआ. उनकी भाषा हंगरी के जनजीवन और समाज से जुड़ी ऐसी जीवंत बोलचाल की भाषा है. ..कि उन्हें पढ़ना प्रेमचंद के साथ होना है !
2 Comments
mamtakalia011@gmail.com
विजय सती आपने हंगरी समाज,कला और साहित्य से जुड़ी दुर्लभ सामग्री इस लेख में दी है।इसे भारत और हंगरी के प्रिंट मीडिया में छपने को दें।यह जानकारी देशों को एकमेक करने के लिए ज़रूरी है।सात पैसे कहानी मैंने पढ़ी हुई है
Kiran
आदरणीया मैम
सादर प्रणाम
सदा की भांति आपकी लेखनी में मनोभावों का सुंदर चलचित्र प्रस्तुत हुआ है।
पेतोफी शांदोर की क्रांति और प्रेम का अनूठा समन्वय फिर असफल विवाह की वेदना और अमृता शेरगिल की कला और संगीत का सामंजस्य,अकाल मृत्यु ,
मोरित्स की वेदना सभी ने आंखो के समक्ष अतीत को वर्तमान में जीवंत कर दिया।बहुत मर्मस्पर्शी संस्मरण हैं।
आपने सही कहा कला का अंत नहीं होता,धरोहर के रूप में संचित रहती है।
अपरिचित पात्रों के संगीत,राष्ट्रीयता से भरपूर जीवन और साहित्य से परिचित कराने और ज्ञानवर्धन के लिए बहुत बहुत आभार।🙏