उत्तर प्रदेश सर्वोदय मंडल के अध्यक्ष एवं गांधी विनोबा जेपी विरासत बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक राम धीरज जी की क़लम से पांचजन्य में छपे पंकज मिश्रा के लेख और उस लेख के माध्यम से फैलाए जा रहे असत्य और भ्रम का जवाब*
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*भाई पंकज जी*
*आपका पांचजन्य में प्रकाशित लेख एक मित्र ने भेजा है। मैंने पढ़ लिया। मुझे यकीन नहीं हो रहा है कि आप जैसे व्यक्ति ने यह लेख लिखा है और सत्य नैतिकता की बात करने वाली पत्रिका पांचजन्य जैसा राष्ट्रीय स्वयंसेवक के मुखपत्र ने प्रकाशित किया है। यह मेरे लिए अविश्वसनीय और आश्चर्य का विषय है।*
*पत्र-पत्रिकाओं में शोध पूर्ण और गहरी जानकारी देने वाले लेख प्रकाशित होते हैं ताकि लोग उसको पढ़कर न केवल ज्ञान पा सके बल्कि जीवन में उतार सकें। दिनमान जैसे पत्र में आप लिखते थे और हमारे जैसे साधारण कार्यकर्ता पढ़कर उससे सीखते थे। लेकिन अभी जो आपने पांचजन्य में लिखा है, वह तो तथ्यहीन और स्तरहीन है। मेरा तो कुछ भी लिखने का मन नहीं हो रहा है लेकिन मित्रों के आग्रह के कारण और आपने मेरा नाम उसमें लिख दिया है, इसलिए यह पत्र लिख रहा हूं।*
*सर्व सेवा संघ के बारे में जो बातें आपने लिखी हैं, वह असत्य है। मैं आप जैसे विद्वान साथी से यह अपेक्षा नहीं करता कि आप इस तरह की असत्य बातें मीडिया मे लिखेंगे। कुछ तथ्य आपकी और पाठकों के संज्ञान में लाना चाहता हूं।*
*सर्व सेवा संघ की जमीन 1960, 1961 और 1970 में तीन अलग-अलग रजिस्ट्री के माध्यम से ली गई है। और इसका पैसा द्वारा स्टेट बैंक चालान से जमा किया गया है। रेलवे और उसके ऑडिट विभाग ने कोई आपत्ति नहीं की है और रेलवे लैंड रिकॉर्ड विभाग ने कोई आपत्ति नहीं की है। फिर भी रेलवे का यह कहना कि कूट रचित दस्तावेज के माध्यम से यह जमीन ली गई है, यह शरारत है।*
*जो लाल बहादुर शास्त्री,विनोवा भावे, जयप्रकाश नारायण आदि अपनी ईमानदारी के लिए जाने जाते हैं, रेलवे प्रशासन ने इन नेताओं के ऊपर जाली दस्तावेज तैयार कर जमीन हथियाने का आरोप लगाया है और यही बात आप भी कह रहे हैं। यह तो झूठा सरकारी वक्तव्य है।आप ने लिखा है कि सारा विवाद 8 एकड़ जमीन का है। 5 एकड जमीन गांधी विद्या संस्थान के पास है, वह भी रेलवे की ही है। अगर 8 एकड विवादित जमीन है और यह कूट रचित दस्तावेज से लिया गया है तो बाकी 5 एकड़ जमीन भी सर्व सेवा संघ की ही है और रेलवे से ही ली गई है तो वह जमीन पवित्र कैसे हो गई, इस बात को पाठक स्वयं समझ सकते हैं।*
*जहां तक हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट द्वारा याचिका खारिज करने की बात है तो याचिका खारिज नहीं की गई है बल्कि माननीय इलाहाबाद हाईकोर्ट सुप्रीम कोर्ट ने सिविल कोर्ट में जाने के लिए कहा है।*
*हम हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट इसलिए गए थे कि सरकार ने 72 घंटे में सर्व सेवा संघ को गिराने जा रही थी। उस ध्वस्तीकरण की प्रक्रिया को रोकने के लिए किया था।*
*पंकज जी ने आरोप लगाया है कि विनोवा जी आए थे, रेलवे के भवन में रुके थे, यह भी सफेद झूठ है। विनोवा जी काशी विद्यापीठ में रुके थे और आर एस एस के लोगों ने भी उनको 1960 में अपने कार्यालय में बुलाया था और उनका प्रवचन अपने कार्यकर्ताओं को सुनवाया था। पंकज जी के अनुसार अगर विनोबा जी फर्जी आदमी थे, जवाहरलाल के बहकावे में भूदान आंदोलन कर रहे थे, जमीन मांग रहे थे तो आरएसएस के लोगों ने विनोवा जैसे फर्जी आदमी को अपने पवित्र संगठन में क्यों बुलाया था ? यह स्वयं पाठक समझ सकते हैं।*
*अभी हाल में ही विनोवा की तीन किताबें मधुकर, कार्यकर्ता पाथेय, गीता प्रवचन तीन किताबें आर एस एस के हेड ऑफिस ने सर्व सेवा संघ प्रकाशन से मंगवा कर अपने कार्यकर्ताओं को दिया है। विनोवा जैसे गलत आदमी की किताब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने क्यों अपने कार्यकर्ताओं को पढ़ने के लिए दिया। पंकज जी की जानकारी के लिए यह बता दें कि वरूणा के किनारे का यह क्षेत्र बहुत ही बीहड था। 40-50 फिट तक गहरे गड्ढे थे। यहां कुछ पेड़ और झाड़ियां थी। यहां गंदगी का अंबार था। उसे साफ कर भवन बनाए गए।*
*पंकज जी आपको यह भी पता है कि 1960 से गांधी विद्या संस्थान और 1974 का संपूर्ण क्रांति आंदोलन बनारस से संचालित हो रहा था। देश-विदेश के बड़े-बड़े विद्वान नोबेल पुरस्कार प्राप्त शूमाकर, इवान इलिच, प्रभाष जोशी, भवानी प्रसाद मिश्र, प्रोफेसर अम्लान दत्त आदि हजारों लोग विनोबा भावे और जयप्रकाश से मिलते थे। रामदत्त त्रिपाठी, राम बहादुर राय, आनंद कुमार जैसे हजारों नौजवान आते और मिलते थे लेकिन तब पंकज जी समाजवादी तेवर के थे, तब उन्हें जयप्रकाश नारायण जी की बातें अच्छी लगती थी और यह जगह भी, जिसे आज वह रेलवे की बता रहे हैं लेकिन जब से उनका विचार परिमार्जन हो गया है, समाजवादी से स्वार्थवादी हो गए हैं, तब से उनको गांधी विनोवा जयप्रकाश लोहिया पंडित नेहरू खराब लगने लग गए हैं और झूठ बोलने एव लिखने वाले लोग अच्छे लगने लगे गए हैं ।*
*हम 9 और 10 अगस्त के सम्मेलन की तैयारी में लगे हुए हैं। इसलिए हम लंबा जवाब नहीं लिख रहे हैं। बाद में जब समय मिलेगा फिर विस्तार से लिखेंगे।*
*राम धीरज*
*सर्व सेवा संघ, वाराणसी*