लेखक- चन्दशेखर लोहुमी
‘मेरा जीवन मेरा अनुभव ‘– चन्द्रशेखर लोहुमी इस कवर पेज को देखते ही मुझे उस वक्त की याद आ गई जब मैं हाईस्कूल में था। उन दिनों इस खोजकर्ता एवं इनकी खोजों के संबंध में इतना छपा था कि मैं इस अद्भुत व्यक्तित्व के बारे में जानने के लिए व्यग्र हो गया था पर अखबारों और मैग्जीनों में यह जिक्र बहुत लंबे समय तक नहीं चला और लोहुमी जी के बारे में जानने की इच्छा धुंधलाती चली गई, लेकिन लंबे समय उपरान्त या यूं कहें कि कई दशकों बाद उनके पुत्र हरिहर लोहुमी जी द्वारा इस पुस्तक की प्रस्तुति ने मेरे जैसे कइयों की जिज्ञासा को शांत किया है।
इस पुस्तक के प्रारम्भिक अध्याय को देवेन्द्र मेवाड़ी जी ने ‘ कीड़े वाले मास्साब ‘ नाम दिया है। मिडिल परीक्षा पास, ‘सुगम विधि पुस्तिका ‘ का लेखक साथ में राष्ट्रपति पुरुस्कार प्राप्त प्राइमरी पाठशाला का अध्यापक, लेन्टाना बग खोजने के लिए विश्व भर में चर्चित इस साधारण मास्टर के असाधारण कार्यों से मेवाड़ी जी की मुलाकात पन्त नगर विश्वविद्यालय में हुई और तब ‘ किसान भारती’ में छपे पहले साक्षात्कार के कारण दुनियां इस अनोखे व्यक्तित्व को जान पाई।
कुरी या लैंटाना को लोहुमी जी ने अंग्रेजों की जहरीली सौगात कहा है। वो लिखते हैं कि कुरी ने खेती-बाड़ी चौपट कर दी थी। इसकी झाड़िया काटने के पीछे बड़े – बच्चे सबको लगना पड़ता था। एक बार गेहूं बुआई के वक्त बच्चे दो दिन तक स्कूल नहीं आए पता करने पर बच्चों ने अपने लाल छाले पड़े हाथ दिखाए जो कुरी की झाड़ी काटने के कारण घायल हुए थे। इन्हीं कारणों से बार-बार उनके मन में कुरी को हमेशा के लिए समाप्त करने की इच्छा बलवती होती थी। उन्होंने किसी पुस्तक में आस्ट्रेलिया में नागफनी फैलने के कारण चरागाहों के नष्ट होते वक्त किसी चरवाहे द्वारा नागफनी को समाप्त करने वाले कीट का किस्सा पड़ा था। लोहुमी जी ने भी कीट को ढूंढने का प्रयत्न किया सुबह , सायं , रात और दिन जाड़े , गरमी, बरसात हर मौसम में खोज की पर कीट का पता नहीं चला। दिन-रात मेहनत के बाद भी जब पता नहीं चल पाया तो लोहुमी जी ने उस कुरी की झाड़ी पर गुस्से में लाठी पटकी और सुपरिणाम सामने था कूरी को समाप्त करने वाला कीड़ा | लोहुमी जी ने इस कीट की जीवन क्रिया का हर पहलू किसी वैज्ञानिक की तरह रिकॉर्ड किया। उहोंने कूरी के अलावा 276 प्रकार की वनस्पतियों पर इस कीट का अध्ययन किया कि क्या ये उन वनस्पतियों के लिए नुकसानदायक तो नहीं हैं ?
लोहनी जी लिखते हैं कि, ‘ चार वर्ष की कठिन तपस्या से मैं ‘ लैंटाना बग ‘ को ढूंढकर उस पर खोज कर पाया। … परन्तु’ लैंटाना बग ‘ सरकारी फ़ाइलों में उलझकर रह गया। … शायद ही मैं अपने जीवन काल में कुरी का समूल नाश होता हुआ देख पाऊं।’
लोहुमी जी ने मक्के की गिल्ली पर भी शोध किया और इस शोध टीम के आप लीडर रहे। उन्होंने मक्के की गिल्ली के राख के कीट नाशक के तौर पर, एक डिटर्जेंट के रूप में, कपड़ों के दाग निकालने वाले वॉशिंग पाउडर के रूप में अनेकों अनेक गुण बताएं हैं।
पुरानी इमारतों की ईंटों एवं पत्थरों के क्षय के कारणों का लोहुमी जी ने विस्तृत अध्ययन किया। तिपतिया ( चलमोड़ा ) को समाप्त करने की खोज भी आपने की।
स्वास्थय के लिए मोटे अनाजों के महत्व को लोहुमी जी बहुत अच्छी तरह जानते थे। आपने इस विषय का विस्तृत अध्ययन किया तथा इस विषय पर लेख भी लिखे।
प्रकृति और पर्यावरण जैसे कई विषयों पर सूक्ष्म जानकारी रखने वाले चन्द्रशेखर लोहुमी जी पर पहाड़ द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक अद्वितीय है। उत्तराखंड के ऐसे महापुरुषों की जीवनी विद्यालयों में पाठ्य-पुस्तकों का विषय होना चाहिए।
‘मेरा जीवन मेरा अनुभव ‘ का प्रकाशन ‘पहाड़’ संस्था द्वारा किया गया है। इसका मूल्य 250/- ( रु दो सौ पचास) है।
दिनेश उपाध्याय