कमलेश जोशी
लगातार कट रहे जंगलों और सूखते फलदार वृक्षों की वजह से बंदरों और लंगूरों ने अपनी भूख मिटाने के लिए इंसानी बसासत में खेती को बर्बाद करने की अपनी मुहिम जारी रखी जिससे परेशान होकर लोगों ने खेती करना छोड़ दिया और समस्त बंदर प्रजाति को भूखों मरने के लिए विवश कर दिया. इंसानों के खेती छोड़ते ही बंदर प्रजाति सकते में आ गई और सोचने लगी कि आज तक जिस इंसान को हम अपने पीछे दौड़ाया करते थे आज वही इंसान दो जून की रोटी के लिए हमें अपने पीछे दौड़ाने लगा है. सारे जंगल में खलबली मच गई. बंदरों के बच्चे भूख से बिलखने लगे. कई बच्चे तो इतने कुपोषित हो गए कि विश्व बंदर प्रजाति की हंगर इंडेक्स में उनका नाम प्रथम श्रेणी में आने लगा. दुनिया भर में थू-थू होने लगी कि देखो इन बंदरों को जो अपने बच्चों को दो टाइम का खाना तक नहीं खिला सकते ये क्या खाक बंदरों का अलग जहान बनाएँगे. इन्होंने तो इंसानों के आगे घुटने टेक दिये. ये सब सुनकर मादा बंदरों का रोष इस कदर बढ़ गया कि उन्होंने बंदरों को चेतावनी दे डाली कि किसी भी तरह या तो इंसानों को खेती करने को मनाएँ या फिर खाने का कुछ ऐसा प्रबंध करें जिससे उनके बच्चों को भूखा न सोना पड़े.
जंगल में बंदरों और लंगूरों की आपात बैठक बुलाई गई. समस्त बंदर प्रजाति विशालकाय पेड़ों की टहनियों पर अपना स्थान ग्रहण कर बंदरों के मुखिया को सुनने के लिए आतुर हुए जा रही थी. मुखिया जी ने किसी बड़े नेता की तरह हुंकार भरते हुए कहा-“भाइयों और बहनों! देख रहे हो? एक समय का बंदर आज इंसान क्या बन गया हमें ही आँखें दिखा रहा है.” मुखिया जी की इस वैज्ञानिक बात को सुनकर बंदरों में सहसा एक कौतुहल सा मच गया और वो एक टहनी से दूसरी टहनी पर उछल-कूद करने लगे. मुखिया जी ने उन्हें धैर्य रखने की सलाह देते हुए अपनी बात ध्यानपूर्वक सुनने को कहा. “देखो अब हमें उछल-कूद से नहीं बल्कि विवेक से काम लेना होगा”-मुखिया जी ने गंभीर मुद्रा में भौंहें तानते हुए कहा. “लेकिन हम करेंगे क्या मुखिया जी? इंसानों ने तो खेती बंद कर के पहले ही हमारी कमर तोड़ दी है.”-लंगूरों के सरताज ने तार्किक प्रश्न किया.
“खेती को अब हमें भूलना होगा और सीधा इंसान की रसोई कब्जा करना होगा”-मुखिया जी ने असंभव सी एक बात कहकर बंदरों व लंगूरों की बैचेनी बढ़ा दी. “अरे मुखिया जी! क्या बहकी-बहकी बातें कर रहे हैं? जो इंसान हमें अपने खेतों में तक नहीं घुसने देता वो हमें अपनी रसोई में बैठा कर भोजन परोसेगा क्या?”-बंदरों में सबसे होशियार नौजवान बंदर ने अपनी तर्कसंगत बात रखी तो समस्त बंदर प्रजाति हँस पड़ी.
“अरे हँसना छोड़ो और मेरी बात ध्यान से सुनो”-मुखिया जी बोले “हमें सबसे पहले इंसानों का विश्वास जीतना होगा कि हम अब उत्पाती नहीं रहे. पूरी तरह बदल चुके हैं. हम इंसानों और उनकी फसलों को अब किसी तरह का नुकसान नहीं पहुँचाएँगे. बल्कि सुख दुख में हमेशा उनका साथ देंगे.”
समस्त बंदरों और लंगूरों को हिदायत दी गई कि जब तक रसोई पर कब्जा नहीं हो जाता तब तक कोई भी किसी तरह का उत्पात नहीं मचाएगा और ना ही इंसानों को कोई नुकसान पहुँचाएगा. जितनी हो सके उनकी मदद की जाए. अपने पहले के कृत्यों के लिए समस्त बंदर प्रजाति मनुष्यों से हाथ जोड़कर माफी माँगेगी. खासकर स्त्रियों का विश्वास जीतना सबसे जरूरी है. स्त्रियों के विश्वास जीतने के लिए एक तेज तर्रार लंगूर ने अपनी योजना मुखिया जी के सामने रखी-“मनुष्य भावुक व भावनाओं से भरा प्राणी हैं. हमें कुछ ऐसा करना होगा जिससे कि हम भावनात्मक रूप से उसे अपने वश में कर सकें. उपाय यह है कि हम एक नवजात बच्चे को बस्ती से चुपके से उठा कर जंगल ले आएँगे और जब खोजबीन के बाद सब थक हार जाएँगे और रोने बिलखने लगेंगे तो भेड़िये पर बच्चा उठा ले जाने का इल्जाम लगा हम उस बच्चे को सभी बस्ती वालों के सामने वापस उसकी माँ को दे आएँगे. इससे हम उनका विश्वास तो जीतेंगे ही साथ में स्त्रियों के बीच हमारी लोकप्रियता भी बढ़ेगी.”
मुखिया जी को लंगूर की योजना पसंद आई और उन्होंने समस्त बंदरों और लंगूरों को काम पर लग जाने का आदेश दिया. बच्चा उठाने की योजना सफल रही. बच्चा वापसी से पहले एक तेज तर्रार लंगूर ने उस बंदर के शरीर पर किसी नुकीले हथियार से कुछ घाव बना दिये जो बच्चे को वापस बस्ती में लेकर जाने वाला था. लंगूर का मानना था कि इंसानों को लगना चाहिये कि हमने अपनी जान पर खेलकर बच्चे को बचाया है. उधर बस्ती में बच्चे की गुमशुदगी की वजह से मातम पसरा हुआ था. बंदरों का एक बड़ा समूह बच्चा गुमशुदगी के इस ग़म में रो रोकर इंसानों को ढाँढस बँधा रहा था. मर्दों को बंदरों की यह हरकत कुछ अजीब जान पड़ी लेकिन औरतों का दिल पसीज गया. शाम ढलने को थी कि खून से लथपथ एक बंदर अपने हाथों में नवजात को लिए बंदरों और लंगूरों के झुंड के साथ बस्ती की तरफ चला आ रहा था. बच्चे को ज़िंदा देख उसकी माँ उससे लिपट कर रोने लगी. तभी लंगूरों ने उस बंदर का गुणगान करना शुरू कर दिया “क्या बताएँ बहन जी कैसे हमारे इस भाई ने आपके बेटे को भेड़िये के चंगुल से बचाया. वो तो बच्चे को मारने ही वाला था कि समय पर हमारे भाई ने अपनी जान पर खेलकर आपके बच्चे को बचा लिया. देखिये ना उस भेड़िये ने कितने ज़ख़्म दिये हैं हमारे भाई को.”
बंदरों का इंसानों के प्रति हुआ हृदय परिवर्तन और बच्चे को बचाने की उनकी वीरता देखकर महिलाएँ बंदर प्रजाति के प्रति कृतघ्न हो गई. ज़ख़्मी बंदर की मरहम पट्टी के लिए डॉक्टर बुलाया गया और जब तक वह पूरी तरह ठीक नहीं हो जाता उसके बस्ती में ही रहने की हामी समस्त महिलाओं ने एक सुर में भर दी. बंदर अपनी पहली योजना की कामयाबी का जश्न मना दूसरी योजना पर विचार करने लगे. पुनः बैठक बुलाई गई और मुखिया जी ने बंदरों और लंगूरों को दूसरी योजना समझाते हुए कहा-“देखो बस्ती के लोग आग जलाने के लिए जंगल से लकड़ी और जानवरों को खिलाने के लिए घास काटकर ले जाते हैं. अब तुम सब को करना यह है कि लोगों की मदद करते हुए उनके घरों तक लकड़ी और घास पहुँचानी है ताकि उनका हम पर और विश्वास बढ़े.” मुखिया जी के कहे अनुसार बंदर लकड़ी और लंगूर घास इंसानी बस्ती तक पहुँचाने लगे. लोगों को यह सब अजीब तो लगा लेकिन बिना मेहनत किये मिल रही घास व लकड़ी ने बंदर प्रजाति पर उनके विश्वास को और प्रगाढ़ कर दिया. इसी तरह बंदर कभी बस्ती के बच्चों को पेड़ से फल तोड़कर देते तो कभी महिलाओं के सिर से जुएँ साफ़ करते. गाँव के लोग कल तक जिन बंदर और लंगूरों को भगाते नहीं थकते थे आज वही बंदर और लंगूर हमेशा इंसानी बसासत के आसपास इंसानों के साथ घुले मिले नज़र आने लगे. बंदरों ने उनका विश्वास तो जीत लिया था लेकिन रसोई तक पहुँचना अभी भी टेढ़ी खीर था.
अगली बैठक में तय यह हुआ कि किसी भी तरह महिलाओं को रसोई से दूर किया जाए तो रसोई पर कब्जा जमाने का उनका सपना पूरा हो सकता है. रसोई पर कब्जा जमाने का दायित्व मादा बंदरों और लंगूरों को दिया गया. मादा लंगूरों ने एक उपाय सुझाया-“महिलाओं को इस बावत भड़का दिया जाए कि पुरूषों की अपेक्षा वो सबसे ज़्यादा काम करती हैं. उन्हें आराम करने तक का समय नहीं मिलता. अपनी आधी से अधिक ज़िंदगी वो रसोई में ही खपा देती हैं. बाकी की ज़िंदगी बच्चे पालने और घर के अन्य कामों में गुज़ार देती हैं.” अंत में उन्हें यह यक़ीन दिलाया जाए कि यदि वो चाहें तो बंदर प्रजाति जिस तरह अन्य कामों में उनकी मदद कर रही है उसी तरह रसोई में भी उनकी मदद कर सकती है. महिलाओं को भड़काने की योजना पर अमल किया गया और बंदर प्रजाति इस काम में काफ़ी हद तक सफल रही. महिलाओं ने रसोई का काम छोड़ने का मन बना लिया और सारा दारोमदार बंदरों और लंगूरों के हवाले कर दिया. पुरूषों को बंदरों की दरियादिली पर पहले से ही शक था लेकिन रसोई पर कब्जे वाली बात से उनका शक पूरी तरह यक़ीन में बदल गया. उन्होंने रसोई में बंदरों के प्रवेश का विरोध किया लेकिन महिलाओं की ज़िद के आगे वो हार गए और बंदर प्रजाति का रसोई में प्रवेश सुनिश्चित हो गया.
रसोई में कब्जे के बाद कुछ दिनों तक बंदरों ने बस्ती के लोगों को खूब स्वादिष्ट व्यंजन खिलाए और महिलाओं व पुरुषों की खूब सेवा की. घर के तमाम छोटे-मोटे काम बंदर व लंगूर मिलकर कर लेते. अब पुरूषों को भी लगने लगा कि उनका बंदर प्रजाति पर शक करना उनकी भूल थी. महिलाओं के साथ ही पुरूष भी बंदरों और लंगूरों के हृदय परिवर्तन की तारीफ करते नहीं थकते. बस्ती के लोगों को निठल्ला बनाने के बाद बंदरों ने अपने असली मक़सद पर काम करना शुरू किया. आपात बैठक बुलाई गई और तय किया गया कि जंगल के सभी बंदर और लंगूर बस्ती की तरफ कूच करेंगे और बस्ती में रह रही पूरी मनुष्य प्रजाति को बस्ती से बेदखल होने को मजबूर कर देंगे. हजारों हजार बंदरों ने बस्ती पर कब्जा कर लिया. इससे पहले कि लोगों को कुछ समझ आता बंदरों और लंगूरों ने घरों में रखे चाकू कुल्हाड़ी जैसे तमाम हथियार अपने कब्जे में ले लिये और लोगों को धमकी दी कि समय रहते बस्ती छोड़कर चले जाएँ वरना परिणाम बुरा होगा. लोगों ने हाथ जोड़े, बंदरों के आगे गिड़गिड़ाये लेकिन बंदरों ने एक न सुनी. बंदर प्रजाति के अपने पिछले कृत्यों के लिए हाथ जोड़कर माफी माँगने, षड्यंत्र रचने, महिलाओं को भड़काने और लोगों की झूठी सेवा कर उन्हें अपने विश्वास में लेने का परिणाम यह हुआ कि न चाहते हुए भी लोगों को बस्ती छोड़कर जाना पड़ा और बस्ती पर बंदरों और लंगूरों का कब्जा हो गया. बस्ती के लोग अब दर-दर भटक रहे हैं तथा बंदर व लंगूर बस्ती के तमाम संसाधनों को बर्बाद कर रहे हैं.