-इस्लाम हुसैन
सानीउडयार का बलवा और अब्बा के मामू का परिवार
अब्बाजी और दादा जी का काठगोदाम से अल्मोड़ा आना जाना चलता रहा, लेकिन रोजी रोटी और रिश्तेदारों से विवाद में अल्मोड़ा रहना और बाद में वहां जाना भी मुश्किल होता जा रहा था। उधर नई दादी को कुमाऊं की राजधानी अल्मोड़ा में रहने की आदत थी, और उन्हें काठगोदाम में रहना रास नहीं आ रहा था। रिश्तेदारों की भी इसमें रजामंदी थी ।
इसी विवाद बहुत बढ़ गया जिसके कारण अब्बा जी शायद पूरे अल्मोड़ा से ही नाराज हो गए थे। उन्हें अपने आबाई शहर का हर शख़्स अपना दुश्मन लगने लगा था। अब्बा जी ने अल्मोड़ा न जाने, रहने और किसी से ताल्लुकात रखने की भी कसम खा ली थी। उसी बीच अब्बा जी की रोडवेज़ में नौकरी लग गई इससे पहले उन्होंने हर तरह की मजदूरी और पल्लेदारी का काम किया नौकरी लगी तो कुछ आर्थिक स्थायित्व आ गया, और जिंदगी चलने लगी।
तभी एक बहुत बुरी खबर आगई , यह अप्रैल 1950 महीने की शुरुआत की बात रही होगी, अल्मोड़ा से उड़ते उड़ते खबर आई कि काण्डा में बलवा हो गया और वहां रहने वाले दो मामूओं के परिवार मारे गए है। (सानीउडयार काण्डा का यह दंगा 28-29 मार्च 1950 को हुआ था। 31 मार्च या 1अप्रैल को लोग काण्डा से अल्मोड़ा पहुंचे थे तभी लोगों को पता चला था)
दादाजी और अब्बा जी बेबस थे, काठगोदाम में रहकर कुछ और पता नहीं चला अपनी कसम तोड़कर अल्मोड़ा गए, क्या पता कुछ सही खबर मिल जाए।
अल्मोड़ा में बस इतना ही पता चला कि काण्डा के सानीउडयार इलाके में बहुत वीभत्स कुकर्म हुआ है किसी मुसलमान को नहीं छोड़ा औरतें और बच्चे भी मारे गए, एक बदमाश जो पंजाब से आया शरणार्थी था वह जगह जगह घूमकर जहर फैला रहा था, उसने कुछ लड़कों और बवाली लोगों को भड़काकर यह काण्ड किया था। इस काण्ड को सुलगाने में एक बदचलनी की वारदात भी शामिल थी।
काण्डा के सानीउड्यार के आसपास गांवों में रहने वाले मुसलमानों को रात में घरों में घुसकर कुल्हाड़ी खुखरी और दराती से काट डाला गया, 20-22 मुसलमानों को मारा गया था कई घायल हुए। इसी काण्ड के बीच बहुत लोगों को हिन्दुओं ने हिम्मत करके बचाया और बाद को घायलों को बागेश्वर के अस्पताल में भर्ती कराया था, बाकी बचे हुए लोग गरुड़ और अल्मोड़ा चले गए थे।
अब्बा को यह खबर लगी कि उनके 2 मामा एक मामी और ममेरा भाई तो मारा गया लेकिन छोटी छोटी दो ममेरी बहिनें और एक मामी बच गईं थीं।
वहां कोई मुसलमान परिवार तो बचा नहीं था कहां रहतीं वो दोनों बच्चियां और मामी ? वहां उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था, इसलिए वहां काम करने वाले चर्च और मिशनरियों ने उनको आश्रय दिया। फिर पता चला कि उन दोनों लड़कियों और मामी को उस इलाके में कार्य करने वाले मिशनरी कहीं ले गए।
मिशनरी अमेरिका से आए ऐसे अमीर लोग हुआ करते थे जो कुछ समय के लिए धार्मिक सामाजिक काम किया करते थे, अधिकतर वे किसी चर्च से जुड़े रहते थे।
अब्बा जी कि नई नई नौकरी थी,फिर भी अब्बा जी ने उनका पता लगाने की बहुत कोशिश कीं लेकिन उनका पता नहीं चल सका। न जाने कितने ईसाईयों और पादरियों से इस बारे जानकारी लेनी चाही। लेकिन उनका पता नहीं चला।
हमने जबसे होश संभाला अब्बा जी को अक्सर अपनी खोई हुई ममेरी बहनों की याद करते हुए देखा,
इसी सिलसिले में वो अल्मोड़ा निवासी तहसील में काम करने वाले अपने हमनाम कर्मचारी, जो बाद में अफसर (नायब तहसीलदार/तहसीलदार) बन गए थे से भी मिले, मगर उन्होंने भी कोई सूचना नहीं दी। उनका रुख ढुलमुल और सरकारी कर्मचारी जैसा रहा।
उनसे मिलने के बाद अब्बा जी को बहुत अफसोस रहा। असल में उन साहब (घटना के समय वह साहब कम उम्र के छात्र थे) का परिवार उस दंगे में सबसे ज्यादा प्रभावित जरूर हुआ था और उनके परिवार के अनेक लोग मारे गए थे और घायल हुए थे, लेकिन वह स्वयं सबसे अधिक प्रभावित गांव/घटना स्थल से दूर थे, इसीलिए दंगों में बच भी गए थे। घटना के तुरंत बाद वह किसी तरह अल्मोड़ा आ गए थे। इसीलिए बहुत सी बातें उनकी जानकारी में नहीं होंगी, या जो भी हो वह सानीउडयार के दंगों के महत्त्वपूर्ण जानकार थे, लेकिन उनकी जानकारी भी पूरी घटना का एक भाग थी। यह बात जरूर थी कि उन्हें बचाने व और लोगों को दंगाईयों को बचाने में स्थानीय हिन्दुओं का बहुत बड़ा योगदान था।उनके कारण कई जानें बचीं थीं।
अब्बाजी तो अपने मामा के परिवार और बहिनों की जानकारी लेने के लिए कोशिश करते रहते थे,खुद मैंने भी काण्डा सानीउडयार दंगों के बाद गायब हुई अपनी ममेरी बुआओं को खोजने के लिए बहुत कोशिशें कीं, इलाके के चर्च से जुड़े और उम्रदराज ईसाईयों से उस घटना के बारे और वहां काम करने वाले मिशनरियों के बारे में जानना चाहा।
इस क्रम में घटना से सम्बंधित जानकारियां तो मिलीं और उस घटना के बाद सम्बंधित और जानकारी भी मिलीं थी, यह भी पता चला कि मिशनरी वापस अपने देश लौट गए थे। दंगों में मुख्य भूमिका निभाने वाले शेट्टी नाम के पंजाबी के बारे में भी पता चला, जिस बदमाश ने पूरे इलाके में घूम घूमकर जहर फैलाकर इस घटना को सुलगाया था। इस सब का उल्लेख करना बहुत जरूरी नहीं है।
इस काण्ड की और जानकारियां इकट्ठा करने में मेरा मन एकबार तब भीग गया था जब उस क्षेत्र की वृद्धा ने अफसोस प्रकट करते हुए घटना का विवरण दिया था और उसे बहुत बुरा बताया था और कहा था वह सब नहीं होना चाहिए था।