चन्द्रशेखर जोशी
पिछले महीने 19 साल के मोनू ने आत्महत्या कर ली थी। सत्ता की चोटी से गांव-बाजार तक सपनों की बहार है, जो इनके फेर में फंसा उसकी जिंदगी बर्बाद है।
…इस बिल्डिंग में बड़ी भीड़ है जनाब। दीवारें बताती हैं यहां सुप्रीम आईएएस से लेकर सेना के जवान तक तैयार किए जाते हैं। नौकरियां कहीं नहीं हैं पर तैयारियां जोरों पर हैं। तैयारी कराने का अंदाज भी निराला है। यहां अंग्रेज भी बनाए जाते हैं। गणित, विज्ञान, कामर्स के सवाल हल कराने के अलावा सभी दुकानों में अजब जमावड़ा है।
…जमाना पहले लिखी गई कहानियों में एक बलवान चिड़िया हुआ करती थी, उसका नाम था रॉक (Roc)। कहानी पढ़ने वाले रॉक के कारनामों से रोमांचित हो उठते। गौर से पढ़ें तो रॉक समय से पहले जान गंवा बैठती थी। बच्चों की जान पर बन आए कोई परवाह नहीं, पर कोचिंग वाले कम उम्र के युवाओं को रॉक स्टार बनने के गुर सिखाते हैं। अंग्रेजी सिखाकर मां-बाप भी बच्चों को अजूबा देखना चाहते हैं, बच्चे तीस-मारखां जीवन ही पसंद करते हैं।
…इन दुकानों में गंभीर, शालीन शिक्षक नहीं होते जो चुपके से विषय की बात पढ़ा दें। अधिसंख्य मास्टर छिछोर, अल्पज्ञानी और अभद्र होते हैं। बच्चों को घेरे रखने, अभिभावकों को फंसाने में इनकी जुबां माहिर होती है। बेहद कमजोर अंग्रेजी बोलने में इनका आत्मविश्वास गजब होता है। अंग्रेजी में पूरी बात नहीं समझा पाते, लिहाजा पूरा शरीर मटकाते हैं, कंधे उचकाते, हाथों को नचाते हैं, नयन-नक्श चमकाते हैं।
…स्कूली शिक्षा के अलावा किसी कंपटीशन की तैयारी का खास सिलेबस नहीं होता। अमूमन बच्चों को मूवी दिखाई जाती हैं। ये पिक्चर अवैज्ञानिक सोच की ब्रह्मांड की सैर से शुरू होती हैं। किसी को कुछ समझ नहीं आता, लगता है कोई बड़ी बात होगी। जल्द फिल्में डांस और अश्लीलता तक पहुंच जाती हैं। दो-चार दिन भाषण देने के बाद कोचिंग में पार्टियों का आयोजन होता है। पार्टियों की शुरुआत बर्थडे सेलिब्रेसन से होती है। पहले मास्टर, मैनेजमेंट फिर लड़के-लड़कियों के जन्मदिन मनाए जाते हैं। फिर होती है नाइट पार्टी। इसके बाद मास्टर कहे जाने वाले लड़के-लड़कियां बच्चों को फ्रेंक होने के टिप्स देते हैं। जवानी में कदम रखने वाले बच्चे हिंसा, नशा, दुर्व्यवहार, अश्लीलता, आवारागर्दी, व्यभिचार के रास्तों पर चलने को लालाइत हो उठते हैं। तब मां-बाप का इन पर बस नहीं चलता। सर-मैम और सीनियर ही इनके सब कुछ, मार्गदर्शक बन जाते हैं।
…क्लास में होने वाली प्रतियोगिताओं के टापिक होते हैं- CROSS WORD PUZZLE, POSTER MAKING, PHOTOGRAPHY, DEBATE SPELLING BEE, BEST OUT OF WASTE, EAT ALL YOU CAN SOAP CREATIVITY, DANCING, GROUP DANCE, SINGING, PAINT JAM और भी न जाने क्या-क्या।
…बेफिजूल के कामों से जब बच्चे बोर होने लगते तो इनकी आउटिंग का कार्यक्रम तैयार होता है। घरों से रुपए मंगाए जाते हैं। मां-बाप की हिम्मत नहीं कि बच्चे से ना कर दें। पहले एक दिन, बाद में दो-तीन दिन बाहर घूमने के प्रोग्राम बनते हैं। तब तक कुछ बच्चे उजड्ड, कुछ शातिर और कुछ गलत कामों की फिराक में रहते हैं। दूर कहीं ले जा कर बच्चों को छोड़ दिया जाता है। इसके बाद हर कुकर्म की छूट होती है।
…एक समय बाद शातिर किस्म के बच्चे लूट-ठगी के धंधों में माहिर हो जाते हैं, कुछ नशेड़ी और अपराधी बनते हैं। बांकी डरे-सहमे, चुपचाप कुंठित जीवन जीते हैं या फिर चुपके से दुनिया से विदाई लेते हैं।
..गुजारिश है- बच्चों को रॉक न बनाएं। घरों में पढ़ाई का माहौल बनाएं, खुद पढ़ें उन्हें भी पढ़ाएं, विज्ञान बताएं, जीवन का गणित सिखाएं, इतिहास का बोध कराएं। झूठे सपनों के बाजार से बच्चों का जीवन बचाएं..