त्रेपन सिंह चौहान के दो बेहद पठनीय उपन्यासों, ‘यमुना’ और ‘हे ब्वारी’ में उत्तराखंड राज्य आन्दोलन की पृष्ठभूमि, 1994 के ऐतिहासिक राज्य आन्दोलन और उसमें हुए दमन, उत्तराखंड राज्य के गठन और राज्य निर्माण के पहले दशक में चले राजनीतिक कुचक्र तथा नवनिर्मित प्रदेश की बदहाली की कथा मर्मस्पर्शी ढंग से कही गई है। इन उपन्यासों के पाठक अभी इनके असर को भूले नहीं होंगे। इन उपन्यासों के क्रम को आगे बढ़ाते हुए त्रेपन सिंह अब अपना तीसरा उपन्यास लिखना शुरू कर चुके हैं। स्वास्थ्य खराब होने और सिर्फ आँख की पुतलियों के सहारे चलने वाले सॉफ्टवेयर की मदद से लिखे जाने के कारण लिखने की प्रगति कम है। मगर फिर भी उम्मीद है कि त्रेपन जल्दी ही इस उपन्यास को पूरा करेंगे। यहाँ हम प्रस्तुत कर रहे हैं इस उपन्यास का एक छोटा सा अंश।
इस ‘उपसंहार’ के साथ समाप्त हुआ था ‘हे ब्वारी’
ठीक तीन दिन बाद पुनः भारी फोर्स पांजों में घुसी। वह भी आधी रात को। यमुना और उसकी ब्वारी मीना, समा और समा की ब्वारी ज्योती सहित चार दर्जन लोगों को गिरफ्तार कर ले गई वह। पुनः आदमी के लालच की खातिर पांजों सहित प्रभावित गांव के भविष्य को रौंदते हुए बुल्डोजर उनके खेतों पर धड़धड़ाते हुए चलने लगा है। कंपनी के कामों में कोई बाधा न पहुँचे। एसडीएम ने अपना कैंप कार्यालय वहीं कंपनी साइट पर खोल दिया है। गांव का आदमी बाहर न निकल पाए पूरे गांव को पुलिस ने घेर लिया है।
यमुना के खिलाफ कोई गभीर मामला नहीं बन रहा था। प्रशासन जुगत भिड़ाने लगा था कि किसी भी हाल में उसके रिश्ते माओवादियों के साथ जोड़े जाएं। क्या किसी जंगल से उसे गिरफ्तार कर दिखाया जा सकता है ?….. जो सरकार के लिए संभव नहीं था…।
सुनने में आया कि सरकार यमुना और उसकी ब्वारी मीना, समा और उसकी ब्वारी ज्योती सहित कुल सात मुख्य लोगों पर देशद्रोह का केस लगाने जा रही है……बल।
सरकार की भाषा में सबसे बदमाश और खुराफाती की पहचान कर ली गई है। वह है अध्यापक संजीव। संजीव को एसडीएम ने अपने ऑफिस में तलब किया। गांव के गरीब लोगों पर सरकार द्वारा किए जा रहे अत्याचार को देखते हुए संजीव ने एसडीएम से कहा, ‘‘अध्यापक का काम आप लोगों द्वारा थोपा हुआ मनुष्य से जानवर बनाने वाला सिलेबस को पढ़ाना ही नहीं होता। अध्यापक का काम सामाजिक जागरूकता को फैलाकर अन्याय के खिलाफ न्याय की लड़ाई खड़ी करना भी होता है।’’
संजीव के खिलाफ निष्कासन की कार्यवाही के लिए एसडीएम शिक्षा विभाग को लिखने जा रहा है।
और अब आगे…
सपनों में ढूंढते सुख
त्रेपन सिंह चौहान
गिनती के बाद सारी महिलायें अपनी बैरक में आ गइंर्। कालू ने यमुना को बताया- ‘‘आज की रात मुझे सपने में एक बाघ दिखाई दिया। उसके पास एक लड़की खड़ी थी। मुझे उस बाघ से भौत डर लग रा था। वह बाघ मुझे हेर रहा था और मैं उस बाघ को हेर री थी। उस लड़की ने मुझसे कहा कि डरने की जरूरत नी है। वह बाघ किसी का नुकसान नहीं करता। तुम सीधे जा सकती हो। मैं सीधे गई। बाघ ने कुछ नी किया।’’
कालू और कुछ बोलती, उससे पहले सुरजा बोल पड़ी, ‘‘मैंने भी सपने में चार जोगी देखे थे। वे हमें नदी पार करा रे थे। बौत भारी गैरी नदी थी रे यमुना वो।’’
सपनां का सिलसिलेवार ब्यौरा काफी देर तक चला। सरिता बीच में बोली, ‘‘देखो, बाघ का दिखाई देना शुभ है। मां सुरी देवी ने दर्शन दिये हैं। रही जोगियों का दिखना, वह तो साक्षात भगवान नरसिंह देवताओं का दर्शन देना हुआ सासू जी। अब आप लोग इसे ऐसे भी देख सकते हैं ंकि न तो सरकार न कोई बड़े नेता हमारे हो सके तो क्या हुआ ? देवी-देवता तो हमारे साथ हैं।’’
जेल में निराशा में डूबे लोगों की आंखों में एक चमक उभर आई। दुःख के इस अंतहीन सिलसिले से निकलने के लिए लोग सपनो ंके इस ढेर में जीने की तमन्नाओं को जलाये रखे हुए आशाओं के तिनके ढूंढ कर एकत्रित कर रहे थे। सबके के चेहरों पर एक चमक उभर आई थी। लेकिन घरों में छोड़े ढेर सारे काम सबको सता रहे थे।
रात को पुलिस गांव में घुसी थी। कुल सोलह महिलाओं और बारह पुरुषों को गिरफ्तार कर तहसीलले आयी थी। तहसील में एस.डी.एम. साहब ने सबसे महत्वपूर्ण काम यह किया कि जितने लोगों को पुलिसकर्मियों ने गिरफ्तार किया था, उन सबके बैक डेट में वारन्ट काट दिये थे। सबसे पहले सब कैदियों से बैक डेट में ही वारन्ट रिसीव करवा दिया गया।
इसमें एस.डी.एम. ने गांववालों पर एक मेहरबानी यह की कि शहीद रूपक की पत्नी ज्योति और हाल में बाघ का निवाला बने मीना के बेटे को ध्यान में रखते हुए अत्यन्त दया दिखाते हुए उन्हें छोड़ दिया। बाकी लोगों को जेल भेज दिया। महिलाओं को पौड़ी और पुरुषों को पुरसाड़ी, चमोली की जेल भेजा गया। लोगों को जेल भेजने के बाद एस.डी.एम. ने अपना कैम्प कम्पनी के कार्यक्षेत्र में ंलगा दिया। अब कंपनी के कई भूखे बुल्डोजर धरती की छाती की चीरफाड़ करते हुए अपनी भूख मिटाने में लगे थे। पेड़ लगातार दारुण चींख के साथ जमींदोज हो रहे थे। वहीं उपजाऊ जमीन को रौंदते बुल्डोजरों के ताण्डव से धरती सहमी सी चींख रही थी।
बाहर से आए मजदूरों की कई टोलियाँ कंपनी के काम के लिये बाहर से गांव में पहुँच चुकी थीं। वे सुबह उठ कर सड़क के दोनों ंओर शौच के लिए निकल पड़ते। गंदगी इतनी फैल चुकी थी कि बाजार के साथ गांव में रहना दूभर हो गया था। यह समस्या किसी के लिए कोई मुद्दा नहीं बन पाए। अभी सबकी नजर इस बात पर थी कि कैसे कंपनी के साथ सेटिंग कर अपनी गोटियाँ फिट की जाएँ। पुलिस ने गांव को चारों ओर से घेर लिया था। पुलिस के घेरे में गांव और जेल में बंद गांव के गरीब अपनी जिन्दगी के साथ अपनी जमीन की सलामती की दुआयें मांग रहे थे। अपनी जमीन और बच्चों के भविष्य को बचाने के लिए गांव के गरीबों की गिरफ्तारी के बाद एक तरह की आक्रोश भरी दहशत क्षेत्र में पसर चुकी थी।
जमीन और जमीर का अनुपस्थित होना हरीनारायण उर्फ चमगादड़ दिल्ली से गांव पहुंचा। चमगादड़ उस दौर में बड़ा हुआ, जिस समय गांव में टी.वी. ने आकर हलचल मचा दी थी। सबसे पहले टी.वी. उसके गांव में ंखरीद कर लाया गया था। खूब औरसटर वाला टी.वी. था वह। उसको शुरू करने के लिए तीन लोगों का होना बहुत जरूरी था। एक छत पर एंटीना घुमा कर नीचे से मिलने वाले निर्देश का इंतजार कर रहा होता, दूसरा बीच में खड़ा होता और सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति टी.वी. स्क्रीन पर सिग्नल देख रहा होता। सिग्नल आते ही वह चिल्लाता, आ गया- आ गया। फिर बाहर खड़ा व्यक्ति इस ऐलान को दोहराते हुए चिल्लाता और एंटीना पकड़े व्यक्ति को भाग कर नीचे आना पड़ता।
टी.वी. पर जो कुछ आ रहा होता, लोग उसे बड़े कौतुहल से देखते। उनको न तो विज्ञापन बोर करते और न ही इंग्लिश समाचार। चमगादड़ के घर पर बिजली का कोई कनेक्शन नहीं था। उसने तार की डोरी के सिरे पर दो एलुमूनियम के तारों के टुकड़े बांध दिए थे। शाम होते ही वह एक लंबे डंडे की सहायता से डोरी को बिजली के तारों पर टांग देता, घर रोशन हो जाता और कुछ समय बाद लोगों के आने से गुलजार हो उठता।
बाद के दिनों में चमगादड़ को बिजली वालों की ओर से जेल भेजने की धमकी मिली तो उसने खुद ही अपने घर पर बिजली फिट की और विधिवत बिजली का कनेक्शन ले लिया। अब वह बाजार से वीडियो किराये पर लाता और फिल्में दिखा कर लोगों से पैसे वसूलने लगा था। उसका इतना मुनाफा हो जाता कि उसे अपने खर्चे के लिए परिजनों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता। परिवार ने चमगादड़ की इस योग्यता को ध्यान में रखते हुए उसके लिए रुद्रप्रयाग से एक लड़की की बात पक्की कर दी। लड़की इण्टर पास थी। उसका नाम कमला था। लेकिन खुद को वह माधुरी दीक्षित से कम नहीं मानती थी। उसकी इस खासियत पर ही चमगादड़ फिदा हो उठा था।
शादी के बाद चमगादड़ के सोच में यह बदलाव आने लगा था कि कमला जितना चाहे खुले, वह सब तो ठीक है, लेकिन यह खुलापन उसके नियंत्रण में ंही रहे। ज्यादा से ज्यादा महिलाओं के बीच तक सब ठीक है। उसका उसके दोस्तों के साथ भी खुलापन दिखाना उसको खटकने लगा था। अब कमला की समझ में ंभी आने लगा था कि उसका पति बड़ा शक्की है। वह इतना अच्छी तरह से जानने लगी थी कि हजबैण्ड के साथ जीवन काटना बहुत भारी पड़ने वाला है। इसका मतलब वह इतना जानती थी कि यह एक तरह की बीमारी है। इस बीमारी से पीड़ित किसी भी व्यक्ति का परिवार कभी भी सुखी नहीं रह सकता। चमगादड़ की बीमारी इतनी ज्यादा बढ़ गई थी कि अब उसके दोस्तों के साथ बातचीत करने में कमला को बहुत सावधानियाँ बरतनी पड़तीं। समस्या यह थी कि वह जितनी अधिक सावधानियाँ बरतने लगती, चमगादड़ का शक यकीन में बदलने लगता।
चमगादड़ अपने दोस्तों को घर लाने में परहेज करने लगा था। फिर भी कुछ लोगों को कमला से बात करना अच्छा लगता था। उन दोस्तों में खासकर कुँवारे ज्यादा होते थे। वे कमला से कहते कि उनके लिए भी अपनी ही तरह की कोई स्मार्ट और समझदार लड़की की बात करे, जिससे वे विवाह कर सकें। बहरहाल चमगादड़ अपने काम में ज्यादा समय नहीं दे पा रहा था। बिजली के काम ने उसकी जिन्दगी को एक मोड़ दिया। वह कमला के मामा के बुलावे पर दिल्ली चला गया। कमला के मामा ने उसे एक होटल में नौकरी दिला दी। उसने कुछ महीने होटल में हेल्पर का काम किया। काम उसे बिल्कुल पसन्द नही आया। लेकिन नौकरी है, यह उसे कमला को अपने साथ दिल्ली ले जाने का अच्छा बहाना मिल गया। कमला के आने का फायदा यह हुआ कि वह भी अपने रिश्तेदारों से चमगादड़ की नौकरी के लिए बात करती रहती। सबके सामूहिक प्रयास से चमकादड़ को विद्युत विभाग में लाईनमैन की नौकरी मिल गई।
चमगादड़ की जब नौकरी लगी, उसकी सेहत काफी अच्छी थी। लेकिन कुछ सालों में वह कमजोर होने लगा था। अब लोग उससे पूछते कि इतनी अच्छी और पक्की सरकारी नौकरी होने के बावजूद भी वह कमजोर क्यों हो रहा है ? उसका एक भोला सा जवाब होता, ‘‘बिजली विभाग वाले कैसे मोटे हो सकते हैं ं?’’ यह उस दौर की बात है जब टीवी पर ‘रामायण’ का समय चल रहा था। यह आम बात थी कि अगर लाईट खाने के दौरान चली गई तो परिवार के सारे सदस्य एक साथ बोल पड़ते, ‘‘इन बिजली वालों का मुर्दा कैसा मर गया यार!’’ एक बार तो हद हो गई थी। चमगादड़ की सास उसके पास दिल्ली आ रखी थी। जल्दी खाना तैयार कर सब टीवी के सामने बैठ गए थे। रामायण में आज ‘सीताहरण’ का कार्यक्रम आने वाला था। मोहल्ले में सन्नाटा पसर गया था। रावण भेष बदल के राम की कुटिया में पहुंच चुका था। दोनों भाई राम-लक्ष्मण कुटिया से बाहर जा चुके थे। सीता रावण के फरेब में फंस चुकी थी। सीता कातर स्वर में मदद के लिए आवाज दे रही थी। उसी वक्त लाईट चली गई। चमगादड़ की सास भूल गई कि उसका दामाद बिजली विभाग में काम करता है। वह पानी पी पी कर बिजली वालों को मां-बहन की गालियाँ देने लगी थी। बेचारे चमगादड़ को शर्म के मारे कमरे से बाहर निकलना पड़ा। वह गुस्से में आकर और भी न जाने क्या-क्या कह बैठती। कमला ने अपनी मां को रोक दिया था। चमगादड़ का मत था कि इस तरह की गालियों का उसकी सेहत पर बुरा असर पड़ रहा है। वह इतना सूख गया कि लोगों ने उसका नाम चमगादड़ रख दिया था और यह नाम उसकी कार्यनीति और नीयत के हिसाब से फिट बैठता था।
चमगादड़ को गांव आए हुए हफ्ते सें ज्यादा समय हो चुका था। वह अपने साथ एक जवान बेटे को गांव लेकर आया था। उसके बेटे ने सिविल से जूनियर इंजीनियरी की थी। दिल्ली में विगत तीन सालों से धक्का खा रहा था। वह गांव आया तो सबसे पहले उसने अपने दस नाली खेत कंपनी को स्टोर बनाने के लिए दे दिए, जिसकी कंपनी को बहुत जरूरत थी। उसके इस सौदे से कंपनी ने उसके बेटे को स्थाई नौकरी दे दी।
चमगादड़ के कंपनी के साथ किये गए इस सौदे ने गांव के नौजवानों में हड़कंप मचा दिया। अब नौजवानों को लगने लगा कि नौकरी की इस दौड़ में वे कहीं पीछे न छूट जायें। नौजवानों की इस बेचैनी को चमगादड़ ने खूब बेहतर तरीके से पकड़ लिया। उसने कंपनी के सहायक मैनेजर के साथ एक बैठक रखनी तय की। चमगादड़ ने ऐलान करवा दिया कि यह पहला और आखिरी मौका है। डाम बनना तो तय है। जो इस बैठक में नहीं आयेगा वह बड़ा मौका गंवा देगा। कंपनी की नजर नौजवानों के साथ, खास कर यमुना के बेटे पर थी। चमगादड़ खुद मनोज के पास गया और उसको यह समझाने में सफल रहा कि ‘‘अगर कम्पनी में आप काम न भी करें तो भी आपकी महीने की सैलरी मिलती रहेगी। अपना दूध का धंधा भी करते रहो और कम्पनी से भी रुपये एँठते रहो। अब गांव टूट गया है। काफी लोगों को नौकरी मिल रही है। यमुना चाची गांव की सीधी सादी जनानी है। उसको नहीं पता कि अब जमाना कितना बदल गया है।’’
मनोज का दिमाग हिल गया था। वह इस प्रस्ताव से पूर्ण रूप से सहमत था। लेकिन माँ को कैसे सहमत करे, यह उसके लिए बड़ी चुनौती थी। मनोज ने शाम को जब यह बात मीना को बतायी तो मीना का दिमाग भनभना गया। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि यमुना का बेटा कैसे इतनी आसानी से किसी के झाँसे में आ सकता है ?
पौड़ी जेल में लगातार मुलाकाती जा रहे थे। बाहर की खबरें लोगों तक पहुंच रही थीं। जमीन और पेड़ों के सत्यानाश के समाचार उनका दुख कई गुना बढ़ा गये थे। आज पदमी का भाई उससे मिलने आया था। वह पदमी को समझा रहा था, ‘‘देख भुली, गांव के सारे लड़कों को कंपनी ने नौकरी दे दी है। अब जेल में रहने से कोई फैदा नहीं है। यहां तक कि यमुना यहां जेल में बंद है और वहां चमगादड़ ने मनोज की नौकरी कंपनी में पक्की कर ली है। दूसरी बात यह है कि जिन खेतों को या जिन पेड़ों को बचाने के लिए तुम लोग जेल आये वे अब एक भी नहीं बचा है। खुद एसडीएम साब ने अपने सामने सारे पेड़ों को कटाया है। भारी पुलिस बल लगा के।’’
भाई की बातो को सुन कर पदमी अंदर से छलनी होती जा रही थी। उसने अपने भाई से ज्यादा कुछ नहीं कहा। वह भारी कदमों के साथ वापस लौट गई। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह यमुना और बाकी साथियों को क्या बोलेगी ? वह जब उनके पास पहुंची तो सबके चेहरों पर एक चमक थी। पदमी कुछ बोलती, उससे पहले ही सरिता बोल पड़ी, ‘‘पदमी देखो तो, आज हमारे समर्थन में प्रदेश भर के आंदोलनकारी लोग सरकार की घोर निंदा कर रहे हैं। अल्मोड़ा, देहरादून, उत्तरकाशी में लोग डीम साहब को मिल कर सरकार की घोर निंदा कर रहे हैं। वैसे हम जानते हैं कि यह सरकार किसी की नहीं सुनेगी फिर भी।’’
सरिता ज्यादा कुछ कहती, उससे पहले पदमी बोल पड़ी, ‘‘भार के लोगों का सयोग तो हमेशा हमारे साथ रा है। गदार तो घर के भीतर निकल आए हैं रे सरिता। अबी भाई बता रा था कि चमगादड़ ने सबी जवान लड़कों का एक जोट बना कर उन सबी को कंपनी में पक्की वाली नौकरी दिला दी है।’’
पदमी की इस सूचना से सभी के अंदर एक बर्फ की एक शिला निकल के फिसल गई थी। पदमी यमुना के करीब गई उसके कंधे में हाथ रखते हुए बोली, ‘‘भैजी कैरा था कि मनोज भी कंपनी वालों के पास गया था नौकरी मांगने। उसको भी कंपनी ने नौकरी दे दी है।’’ पदमी की इस सूचना पर यमुना कुछ नहीं बोली। उसके आंखों से झरझर कर आंसू निकलने लगे। काफी देर खामोशी से रोने के बाद यमुना ने कहा, ‘‘जब से यू राज हमारे नसीब में आया है तब से हम रो ही तो रहे हैं। अब हद हो गई। राज तो रुला रा है, घर के लोगों ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। पैली मनोज के बाबा ने रुलाया अब अपनी कुखी कू जायो रुला रा है।’’
यमुना ने निढाल होकर पदमी के कंधे पर अपना सर टिका दिया।
One Comment
नवीन जोशी
त्रेपन के इस उपन्यास-अंश ने बड़ी उत्सुकता जगा दी. कामना है कि यह जुझारू लेखक,आंदोलनकारी और स्वप्नदर्शी शीघ्र इसे पूरा कर सके. गम्भीर बीमारी के बावज़ूद आँख की पुतलियों के सहारे लिखने की जिजीविषा सफल होगी.