राजीव लोचन साह
श्रावण मास की संक्रान्ति को उत्तराखंड, विशेषकर कुमाऊँ में परम्परागत रूप ‘हरेला पर्व’ मनाया जाता है। न जाने कब से। अब ‘पर्यावरण’ शब्द के आविष्कार के बाद तो इसे पर्यावरण से जोड़ा जाने लगा है और वृक्षारोपण जैसे सरकारी अनुष्ठान भी किये जाने लगे हैं। हरीश रावत की पिछली कांग्रेस सरकार ने हरेले की एक प्रतियोगिता आयोजित करवा कर वाहवाही लूटने की कोशिश भी की थी। जैसा स्वाभाविक था, एक परम्परागत पर्व को इस तरह सरकारी बना देने के छल-छù इस प्रतियोगिता में आने लगे। बेहतर तो यह होता कि हरेला या ‘काले कौव्वा’, जिसमें मकर संक्रान्ति के पर्व पर बच्चे कौओं को आमंत्रित कर उन्हें पकवान खिलाते हैं, जैसे प्रकृति पर्वों को प्राइमरी स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल कर लिया जाता। इन दिनों पाठ्यक्रमों में एक विशेष साम्प्रदायिक उद्देश्य के तहत बुरी तरह छेड़छाड़ की जा रही है। मगर उपरोक्त पर्व तो विशुद्ध रूप से प्रकृति से जुड़े सांस्कृतिक पर्व हैं। इनका किसी धर्म या सम्प्रदाय से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है। यदि इस तरह की पहल होती तो बच्चों को बचपन से ही कुछ जरूरी संस्कार मिलते और अपने उत्तराखंडी होने पर गर्व और स्वाभिमान जागता। हमारी पीढ़ी के लोग अपने बचपन में खुशी-खुशी सिर पर हरेले के तिनके रखते थे। काले कव्वा में बहुत तड़के उठ कर, छत पर जाकर कौवों को पुकारते थे। आज के बच्चे ऐसा करने में शर्माते हैं। उन्हें ऐसा करने में झिझक होती है। अगर अपने पाठ्यक्रम में वे इन पर्वों के बारे में पढ़ेंगे तो बहुत आत्मविश्वास से इन्हें मनाने के लिये प्रेरित होंगे। प्रकृति और प्राणि जीवन के प्रति उनकी रुचि भी जगेगी। उत्तराखंड राज्य आन्दोलन की सबसे बड़ी सफलता यही थी कि इसने उन उत्तराखंडियों, जो अपने को ‘पहाड़ी’ कहे जाने पर शर्माते थे, गर्व से उत्तराखंडी कहने का मौका दिया। राज्य बनने के बाद हमारी क्षुद्र बुद्धि की सरकारों ने उनका यह आत्मविश्वास तोड़ कर, उन्हें फिर से कुमाउनी-गढ़वाली और पहाड़ी-देशी में बाँट दिया।
राजीव लोचन साह 15 अगस्त 1977 को हरीश पन्त और पवन राकेश के साथ ‘नैनीताल समाचार’ का प्रकाशन शुरू करने के बाद 42 साल से अनवरत् उसका सम्पादन कर रहे हैं। इतने ही लम्बे समय से उत्तराखंड के जनान्दोलनों में भी सक्रिय हैं।
One Comment
Mayank Sah
Sir, mai apke mat se anshik roop se sahmat hu magar kya aisa krke hum apne parivar se sanskar dene ka kam bhi km nhi kr rhe. Sare lok parv ya lok utsav hamari sanskriti hain aur use age badhane ka kam ko parivar se kiya jana chahiye kyuki inhe manane ka koi ek tarika nahi hai sab ghar parivar apne apne tarike se in tyoharon ko manate hain. To kya shiksha me ise samayojit krke hum iski naisargikta ko khatam nhi krenge.