राजीव लोचन साह
उत्तराखंड राज्य को बने 23 साल पूरे हो गये। 42 शहादतों और मुजफ्फरनगर जैसी शर्मनाक घटना को झेलकर बना यह राज्य देश के सर्वश्रेष्ठ और अनुकरणीय प्रान्तों में एक होना चाहिये था। मगर यह भ्रष्टाचार, घोटालों और कुप्रबन्धन का एक घिनौना उदाहरण बन कर रह गया। लक्षण शुरू से ही दिखाई देने लगे थे। 1 नवम्बर 2000 को इस राज्य की स्थापना होनी थी। मगर उस वक्त की भाजपा की अन्तरिम सरकार ने ज्योतिषियों से पूछ कर 9 नवम्बर का लग्न निकाला। अब लगता है कि वह साईत ही गलत रही होगी। 9 नवम्बर की रात्रि जब राज्यपाल सुरजीत सिंह बरनाला अन्तरिम सरकार के मुख्यमंत्री नित्यानन्द स्वामी को शपथ ग्रहण करवा रहे थे, तब देहरादून के परेड ग्राउण्ड में राज्य आन्दोलनकारियों के ‘‘गैरसैण…गैरसैण…राजधानी गैरसैंण’’ के नारे गूँज रहे थे। जल्दी ही यह प्रदेश ठेकेदार खंड के नाम से जाने जाना लगा। पर्यावरण को ठेंगे पर रख कर बनाई जा रही जल विद्युत परियोजनायें, जो अब ऑल वेदर रोड रोड जैसी विनाशकारी परियोजनाओं तक पहुँच गयी हैं, केदारनाथ जैसी आपदायें पैदा करने लगीं। इस सबके बावजूद इस प्रदेश में ठेकेदारों और अवैध रूप से पैसा कमाने वालों का दबदबा कम नहीं हुआ। राज्य बनने के 23 साल बाद भी आज यह प्रदेश जमीनों की लूट-खसोट, लगातार हो रहे पलायन, अनेक भर्ती घोटालों, बेरोजगारों के दमन, स्त्रियों द्वारा सडक पर किये जा रहे प्रसव, हर घर को शराब का बार बना देने की कोशिश, समाज को साम्प्रदायिक विद्वेष की आग में झोंक देने के षड़यंत्र और शासकों के रनिवास के खनन के पट्टे बेचने की दुकान बन जाने जैसी बातों के लिये प्रसिद्ध हो रहा है। मीडिया के पूरी तरह सत्ता के शरणागत हो जाने के कारण अब खबरें भी उस तरह नहीं फैलतीं कि जनता का व्यापक असंतोष एक संगठित प्रतिरोध में बदल सके। यह स्थिति तब तक जारी रहनी ही है, जब तक 2024 में केन्द्र सरकार के बदलने पर यह सरकार डबल इंजन के बदले सिंगल इंजन की नहीं हो जाती।