राजीव लोचन साह
यह प्रतीति कि 17वीं लोकसभा के लिये चुनाव प्रक्रिया अपने अन्तिम चरण में है और बहुत जल्दी ही देश को अपना एक प्रधानमंत्री और एक सरकार मिल जायेंगे, आश्वस्तिदायक है। कटुता और तनाव का एक दौर समाप्त हो जायेगा। इस चुनाव में खेल भावना तो जैसे नदारद थी। कुछ स्थानों को छोड़ दें तो देश में सर्वत्र मतदान प्रतिशत सम्मानजनक था। मगर जनता में कहीं किसी तरह का उत्साह कहीं नहीं दिखाई दिया। चुनावी शोर शराबा बहुत कम था और जितना भी था वह मीडिया और सोशल मीडिया में था। बहुत जल्दी ही एक्जिट पोल के परिणाम आ जायेंगे, मगर फिलहाल तो अपने को चुनावी पंडित कहने वाले लोग भी इस चुनाव के परिणामों को लेकर कोई भविष्यवाणी करने से कतरा रहे हैं। जनता की यह चुप्पी हैरान करने वाली है। मगर सोशल मीडिया के पैमाने से देखें तो इस चुनाव ने सामाजिक समरसता का जैसा ध्वंस किया है, वह अभूतपूर्व है। पूरा देश बुरी तरह से बँटा हुआ है। पूर्व में तीन बार नरेन्द्र मोदी को सराहना के विशेषणों के साथ अपने मुखपन्ने पर स्थान देने वाली विश्वप्रसिद्ध पत्रिका ‘टाईम’ ने इस बार उनका फोटो छापते हुए उन्हें ‘डिवाइडर इन चीफ’ घोषित किया। मगर नियम बना कर पहलकदमी भले ही मोदी ने की हो, देश को बाँटने के इस खेल में वे अकेले नहीं रहें। इस बार चुनाव में उतरी कोई भी राजनैतिक पार्टी यह दावा नहीं कर सकती कि उसने शालीनता और शिष्टाचार के साथ अपना अभियान चलाया है। पाँच साल पहले हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सोशल मीडिया का बहुत कौशल से इस्तेमाल कर अपने विरोधियों को हतप्रभ कर दिया था। उन परिणामों से सबक लेकर इस बार इस मंच पर सब बराबर आ गये हैं। सबने झूठ फैलाने वाली फैक्ट्रियाँ खोल ली हैं। लेकिन इस कवायद में समाज धर्म या जातियों में ही नहीं बँटा है, रिश्ते और नातों में भी गहरी दरारें आ गई हैं। इस चुनाव के बाद बहुत से लोग अपने मित्रों या रिश्तेदारों से भी कतराते रहेंगे, बहुत सहज भाव से उनके साथ नहीं बैठ पायेंगे।
राजीव लोचन साह 15 अगस्त 1977 को हरीश पन्त और पवन राकेश के साथ ‘नैनीताल समाचार’ का प्रकाशन शुरू करने के बाद 42 साल से अनवरत् उसका सम्पादन कर रहे हैं। इतने ही लम्बे समय से उत्तराखंड के जनान्दोलनों में भी सक्रिय हैं।