त्रिलोचन भट्ट
लगता है राज्य के अस्थाई राजधानी में जहरीली शराब से हुई छह मौतों के मामलों को भटकाने का प्रयास किया जा रहा है।
सोशल मीडिया पर अभी सुबह एक अखबार में छपी एक संक्षिप्त खबर की कटिंग किसी ने पोस्ट की थी। खबर ब्रीफ होने के बावजूद बहुत कुछ सोचने का विवश करती है। खबर ये है कि उत्तराखंड का प्रति व्यक्ति शराब की खपत में दूसरा स्थान है। पहला स्थान दिल्ली का है। इस खबर को चाहें तो हम मजाक में भी उड़ा सकते हैं, ‘सूरज अस्त पहाड़ मस्त’ जैसा कोई जुमला याद करके, लेकिन वास्तव में स्थिति इससे बहुत आगे की है और निःसंदेह निराशाजनक ही नहीं चिन्ताजनक भी है। और सुनिये यह आंकड़ा तो सिर्फ उस शराब का है जो कि सरकारी ठेकों से बिक रही है। अवैध रूप से दूसरे राज्यों से लाई जा रही या सरकारी ठेके से शराब लेकर उसमें मिलावट की जा रही शराब का मिलावट वाला हिस्सा इसमें शामिल नहीं है। यदि इस हिस्से को भी किसी विधि से इसमें शामिल किया जा सके तो मेरा दावा है कि दिल्ली हमारे सामने नहीं टिकेगी।
सोशल मीडिया पर अभी सुबह एक अखबार में छपी एक संक्षिप्त खबर की कटिंग किसी ने पोस्ट की थी। खबर ब्रीफ होने के बावजूद बहुत कुछ सोचने का विवश करती है। खबर ये है कि उत्तराखंड का प्रति व्यक्ति शराब की खपत में दूसरा स्थान है। पहला स्थान दिल्ली का है। इस खबर को चाहें तो हम मजाक में भी उड़ा सकते हैं, ‘सूरज अस्त पहाड़ मस्त’ जैसा कोई जुमला याद करके, लेकिन वास्तव में स्थिति इससे बहुत आगे की है और निःसंदेह निराशाजनक ही नहीं चिन्ताजनक भी है। और सुनिये यह आंकड़ा तो सिर्फ उस शराब का है जो कि सरकारी ठेकों से बिक रही है। अवैध रूप से दूसरे राज्यों से लाई जा रही या सरकारी ठेके से शराब लेकर उसमें मिलावट की जा रही शराब का मिलावट वाला हिस्सा इसमें शामिल नहीं है। यदि इस हिस्से को भी किसी विधि से इसमें शामिल किया जा सके तो मेरा दावा है कि दिल्ली हमारे सामने नहीं टिकेगी।
सवाल यह कि हमें इस कदर शराबी किसने बनाया कि हम एक दुर्गम पहाड़ी राज्य होने के बावजूद सरकारी ठेकों से इतनी शराब पी रहे हैं कि देश में प्रति व्यक्ति शराब पीने वाला दूसरा राज्य बन गये हैं। अफसोसजनक तो यह है कि ऐसा उस धरती पर हो रहा है, जहां ‘नशा नहीं रोजगार दो’ का नारा लगा था और जहां की टिंचरी माई ने अकेले दम पर शराब व्यवसायियों को हिला कर रख दिया था। दरअसल सच्चाई यह है कि उत्तराखंड की सरकार के पास आमदनी के लिए शराब से अलावा कोई चारा ही नहीं है। ज्यादा से ज्यादा पैसा वसूलने के लिए दूरदराज के गांवों तक में शराब के ठेके खोल दिये हैं। शुरुआती स्तर पर कुछ जगहों पर विरोध भी दर्ज हुआ, लेकिन बाद में लोगों ने मान लिया कि शराब के ठेेके अब इस राज्य की नियति हैं। पिछले दो वर्षों से इस तरह का कोई विरोध कहीं दर्ज नहीं हुआ जिसकी गूंज अस्थाई राजधानी में बैठे सत्तानशींनों तक पहुंच सके।
फिलहाल प्रसंग देहरादून में जहरीली शराब से मरने वाले छह लोगों की मौत का है। हरिद्वार जिले में जहरीली शराब से कुछ महीने पहले की 50 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी, लेकिन इस मामले में अब तक ज्यादा कुछ हुआ नहीं है। इसी बीच देहरादून में यह घटना हो गई है। देहरादून के जिस पथरीपीर इलाके में यह घटना हुई। यह दूर-दराज की कोई झुग्गी बस्ती नहीं है, बल्कि शहर के बीचोबीच नेशविला रोड से लगती बस्ती की घटना है। इस बस्ती से पास ही आलीशान कोठियां हैं और इन्हीं कोठियों में से एक कोठी एक प्रभावशाली भाजपा विधायक की है। इस विधायक का एक नजदीकी व्यक्ति अजय सोनकर उर्फ घोंचू, जो नगर भाजपा में पदाधिकारी रहा और उससे पूर्व एक कांग्रेसी विधायक का खासमखास था, ही इस काण्ड में लिप्त है। विधायक के कार्यक्रमों के लिए पैसे आदि की व्यवस्था करना इसी व्यक्ति का काम था। लिहाजा उसने शराब का कारोबार शुरू किया। बताते हैं कि उसके अड््डे में शराब ठेके से सस्ती मिल जाती थी। जो बोतल ठेके में 150 का मिलता है वह इनके अड्डे पर 100 रुपये में ही मिल जाता है। आशंका यह है कि वे शराब तो ठेके से ही खरीदते थे, लेकिन इनके अड्डे पर शराब में कुछ मिलावट कर दी जाती थी और एक बोतल की दो बोतल तक कर दी जाती थी। मिलावट कुछ इस तरह की होती थी कि इनके अड््डे की शराब पीने के बाद लोगों को ठेके की शराब से नशा ही नही चढ़ता था।
इस तरह अवैध रूप से शराब बेचे जाने की शिकायत कई बार पुलिस से की गई थी, लेकिन जब सिर पर नेताजी का हाथ हो तो भला पुलिस कर भी क्या सकती है। अचानक छह लोगों की मौत हो जाने के बाद जो नाम सबसे पहले चर्चा में आया वह घोंचू का था। तीन दिन तक उसे बचाने के भरपूर प्रयास किये गये, लेकिन तब तक यह नाम इतना आम हो चुका था कि सरकार के हाथ से भी बात निकल चुकी थी, यही वजह है कि मुख्यमंत्री जी को पुलिस अधिकारियों से सख्त लहजे में कहना पड़ा कि घोंचू आकाश में हो या पाताल में उसे ढूंढ कर लाओ। वह तो सिर्फ कहने के लिए ही फरार हुआ था, बाकी पुलिस को तो पता ही होगा कि कहां है। तो उसे पकड़ने में ज्यादा देर न लगी। इससे पहले औपचारिकतावश भाजपा ने उसे अपनी पार्टी से निकालने का कर्मकांड भी पूरा कर लिया था।
इस बीच जहरीली शराब मामले में एक दिलचस्प मोड़ यह आया है कि पुलिस ने अपनी जांच का पूरा फोकस एक शराब कारखाने पर कर दिया है। देहरादून में ही स्थित यह कारखाना जाफरान ब्रांड नाम से देशी शराब बनाता है। पुलिस का दावा है कि मरने वालों के घरों से इसी जाफरान शराब की खाली बोतलें मिली हैं। हालांकि घटना के बाद आबकारी विभाग ने भी इस कारखाने की जांच की थी और शराब के सैंपल लेकर जांच करवाई थी। आबकारी विभाग द्वारा करवाई गई जांच में सैंपल सही पाये गये थे। लेकिन, पुलिस इस बात को नहीं मान रही है। उसका फोकस इसी बात पर है कि कारखाने में ही जहरीली शराब बन रही है। अपनी बात को पुष्ट करने के लिए पुलिस ने फिर से कारखाने में रेड की और कथित रूप से आईआईटी रुड़की से बुलाई गई विशेषज्ञों की टीम के सामने नये सिरे से सैंपल भरवाये।
आबकारी विभाग की जांच को दरकिनार करके खुद नये सिरे से जांच करवाना और ठेके से शराब खरीदकर उनमें मिलावट करने वाले एंगल को छोड़कर पुलिस जिस तरह से शराब कारखाने को कटघरे में खड़ा कर रही है, वह कहीं न कहीं ये संकेत देने के लिए काफी है कि इस मामले में गिरफ्तार किये गये घोंचू को हर हाल में पाक-साफ साबित करने की रणनीति पर विचार किया जा रहा है।