प्रमोद साह
पर्यटन प्रदेश के रूप में हमारी प्राथमिकताएं अभी स्पष्ट नहीं हैं। यूं तो पर्यटक प्रदेश के रूप में उत्तराखंड के पास अपार संसाधन और संभावनाएं विद्यमान हैं लेकिन एक पर्यटक प्रदेश के रूप में हमारा सफर अभी भी बहुत लचर है। पर्यटक आज भी हमारे पास मुख्य रूप से तीर्थाटन के जिस स्वरुप में आते हैं वह प्रकृति का ही उपहार है जो हमारी धार्मिक परंपरा के अनुसार लगातार चला रहा है। राज्यगठन के बाद इस धार्मिक पर्यटन में ही कोविड से पूर्व चार गुना की वृद्धि दर्ज की गई।
एक पर्यटन केन्द्रित राज्य के रूप में पर्यटन प्रदेश की व्यवस्था में सुधार के लिए हमारे द्वारा अभी तक कोई रोड मैप ही प्रस्तुत नहीं किया गया है जिस कारण राज्य में विभिन्न क्षेत्र में पहुंच रहे पर्यटक बहुत अच्छे अनुभव के साथ वापस नहीं लौटते हैं। बावजूद इसके जीडीपी का 13 से 14% हिस्सा पर्यटन क्षेत्र से प्राप्त हो रहा है लेकिन इस क्षेत्र में सरकार का परिव्यय -28 प्रतिशत तो कभी आधा प्रतिशत भी रहता है।
वर्ष 2004 मे अपनी परिव्यय का दशमलव 6.5% हमने पर्यटन के क्षेत्र में खर्च किया। उत्तराखंड में पर्यटन असीम संभावनाओं के बाद भी वांछित रफ्तार नहीं पकड़ सका और नहीं पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए हम नए राज्य में कुछ नया करते हुए दिख रहे हैं। पर्यटन का जो विकास है वह सरकार की कोशिशों के बगैर अनियंत्रित सा ही है। पर्यटन में हम केरल को अपना आदर्श मानकर उससे बहुत कुछ सीख सकते हैं संयोग से केरल में राज्य का आकार परंपरा और विविधता पूर्ण पर्यटन यह सब उत्तराखंड से मिलता-जुलता ही है।
केरल 14 जनपदों का छोटा राज्य है। जिसे देवताओं का अपना प्रदेश भी माना जाना जाता है। यहां का पर्यटन में मुख्य रूप से उत्तर के पर्वतीय जनपद मुन्नार आदि प्रसिद्ध हैं तो कोच्चि और तिरुअनंतपुरम का समुद्र तटीय पर्यटन व पश्चिम में घने जंगलों का अभयारण्य भी यहां प्रसिद्ध है। सबरीमाला का धार्मिक पर्यटन भी यहां महत्वपूर्ण हो जाता है। राज्य की कोशिशों से वैलनेस अर्थात आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति भी केरल के पर्यटन को बढ़ा रही है।
केरल की तर्ज पर हमारे पास भी बेहद विविधता पूर्ण पर्यटन और उसकी संभावनाएं मौजूद हैं। परंपरागत धार्मिक तीर्थाटन जिसमें बद्रीनाथ, केदारनाथ की चार धाम यात्रा जहां कि 2019 में लगभग 35 लाख यात्रियों का आंकड़ा हमने छुआ था इसके अतिरिक्त कांवड़ भी पर्यटन की श्रेणी में है। साथ ही एडवेंचर टूरिज्म जिसमें पर्वतारोहण, पैराग्लाइडिंग, स्कीइंग और वॉटर स्पोर्ट्स की संभावनाएं मौजूद है।
वाटर स्पोर्टस राफ्टिंग में जनता की पहल से तपोवन कोडियाला के मध्य शानदार पर्यटन क्षेत्र का विकास हुआ है जिसकी तारीफ की जानी चाहिए। यह विकास स्वतः स्फूर्त है। बहती गंगा में तपोवन शिवपुरी कोडियाला के मध्य 5000 से अधिक राफ्ट ने पर्यटन की नई संभावनाओं के द्वार खोले हैं लेकिन यहां भी सुविधा और नियंत्रण की आवश्यकता है। इसी प्रकार पिछले 15-20 वर्षों में फॉरेस्ट पर्यटन रामनगर और उसके आसपास बहुत तेजी से बढ़ा है। जहां आज 120 से अधिक रिसोर्ट हैं। जिनमें 4000 के लगभग कमरे मौजूद हैं। इस वन पर्यटन का विकास पूरे 200 किमी0 टनकपुर से चंडीदेवी तक के वनमार्ग में संभव है। यहां दर्जनों जोन बनाए जा सकते हैं।
उत्तराखंड में लगभग 65 सौ होटल रजिस्टर्ड हैं जिनमें लगभग तीन लाख पचास हजार कमरे हैं। इसी प्रकार प्रदेश में 886 धर्मशाला में लगभग डेढ़ लाख यात्रियों की रुकने की व्यवस्था हैं। 2315 सरकारी गेस्ट हाउस हैं। कुल मिलाकर आवासी व्यवस्था पर्याप्त है लेकिन इन दिनों 5000 होमस्टे का लक्ष्य भी प्रदेश में चल रहा है। होम स्टे संचालक अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। यह सब बेहतर पर्यटन के क्षेत्र में उम्मीद जगाता है। लेकिन कोई नियामक संस्थान नहीं होने के कारण रोजमर्रा होटल के किराए, व्यवस्था आदि में अराजकता की स्थिति देखी जाती है जिसे नियंत्रित कर ही पर्यटक राज्य के रूप में हमारी साख बढ़ेगी।