चन्द्रशेखर जोशी
घर आते ही कमल नाम के लड़के की मौत हो गई। उसकी उम्र 24 साल थी। ऐसी मौत की जिम्मेदार सरकार, परिवार और समाज है। असल में कुछ समय पहले कमल को नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती किया गया था।
…छोटे से शहर में पांच नशा मुक्ति केंद्र हैं। सभी खचाखच भरे हैं। इन सेंटरों में नशे के आदी बैड-फर्श पर लेटे रहते हैं। इनमें युवाओं की संख्या अधिक है। मनोविज्ञानी कहते हैं असामाजिक गुण पैदाइशी नहीं होते, परिवार, समाज और परिवेश व्यक्ति का जीवन बदल देता है।
…उत्तराखंड में पिछली सरकार ने कहा-भांग की खेती और डेनिश मार्का शराब से रोजगार मिलेगा और विकास होगा। नई सरकार का कहना है बिना नशे की भांग की खेती करो, हिल टॉप ब्रांड शराब से रोजगार पाओ। युवा पीढ़ी सरकार से भी आगे बढ़ गई है। अब लड़के शराब और भांग नहीं, स्मैक के आदी बनने लगे हैं। कई छिपे अपराध भी जोरों पर पनप रहे हैं।
…पिछले वर्ष एक एनजीओ के सर्वे में चौकाने वाला तथ्य सामने आया। सर्वे में बताया गया कि भारत समेत तीसरी दुनिया के कई देशों में मध्यम परिवारों और सड़क किनारे रहने वाले बंजारों में नशे की प्रवृत्ति सबसे अधिक है। मेहनती गरीब तबके ने नशे से दूरी बना ली है। इसकी पुष्टि नशा उन्मूलन केंद्रों से भी हो रही है। घुमंतु परिवार नशा छुड़ाने के लिए कोई कोशिश नहीं कर पाते। मध्यम कमाई वाले अमूमन लोकलाज से बात दबाए रखते हैं, बाद में मोटी फीस देकर नशेड़ी को नशा उन्मूलन केंद्रों में जमा कर आते हैं।
…हैरत की बात यह कि इन केंद्रों में 19 से 35 साल के लड़कों की भारी तादात है। अधिकतर युवा स्मैक और कई अन्य विकृतियों से घिरे हैं। सेंटर संचालक सभी को एक सी दवाएं देते हैं। इनकी दिनचर्या बदलने के प्रयास किए जाते हैं। जो उग्र हो उठें तो उनकी पिटाई आम बात है। इनको शांत रहने के लिए दवाएं दी जाती हैं। अधिक डोज या लगातार दवा खाने से मरीज का केंद्रीय और परिधीय तंत्रिका तंत्र बिगड़ने लगता है। उसका मस्तिष्क काम नहीं कर पाता। रीढ़ की हड्डी दर्द करने लगती है। क्रेनियल नसें, तंत्रिका जड़, परिधीय नसें, स्वायत्त तंत्रिका तंत्र, न्यूरोमस्क्यूलर जंक्शन और मांसपेशियों में खिंचाव व तनाव बढ़ जाता है। बताते हैं शिशु के जन्म से पहले और 3-4 वर्ष की आयु तक स्नायविक विकास तेजी से होता है। इसके बाद यह विकास धीमी गति से होने लगता है। चिकित्सक बताते हैं नींद और जीवन रक्षक दवाओं से स्नायविक उद्विग्नता बढ़ जाती है। यह समस्या कुछ दिन लगातार रही तो हार्ट अटेक से व्यक्ति की मौत हो जाती है।
…कोई बच्चा गलत आदतों का नहीं होता। उसका दिमाग परिवार की परवरिश, समाज का माहौल ही विकृत बनाता है। उम्र के साथ बच्चों की आदतों में हो रहे परिवर्तनों पर अभिभावक ध्यान नहीं देते। इंटर या उसके बाद की पढ़ाई के लिए अधिकतर समय घर से बाहर बीतता है। पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक डिग्री और व्यावसायिक इंजीनियरिंग कालेजों में स्मैक की खपत बहुत बढ़ गई है। युवा पहले इसको चखता है, उसके बाद आदी हो जाता है। ऐसे युवकों के दोस्त नशा न भी करें तो संगत में कई छिपे अपराध करने लगते हैं। नई विकृतियां उन्हें आनंदित करती हैं और वे सामान्य जीवन खो बैठते हैं।
…गलत रास्ता अपनाते ही युवाओं की आदतों में परिवर्तन आने लगता है। वह अमूमन चुप रहते हैं, झूठ बोलते हैं, घर से बाहर अधिक समय गुजारते हैं। ऐसे युवाओं पर तुरंत ध्यान नहीं दिया गया तो उनका स्वभाव जिद्दी हो जाता है। इसके बाद उन्हें गर्त से निकालना संभव नहीं रहता। कुछ समय बाद वह गलत कामों में गहरे धंस जाते हैं। इसके बाद अभिभावक चुपके से उन्हें नशा उन्मूलन केंद्रों में जमा कर आते हैं। सही काउंसिलिंग हो तो कुछ सुधर जाते हैं, अधिकतर अपनी आदतों से बाज नहीं आते। वह परिवार को बर्बाद करने के बाद जल्द दुनिया से रुखसत हो जाते हैं। जीवित भी रहे तो सामाजिक बीमारी बन जाते हैं। काउंसलरों का कहना है कि औसतन एक नशेड़ी युवक परिवार के अलावा पांच से सात लोगों का जीवन खराब करता है।
..नहीं चेते तो स्कूलों से ज्यादा नशा उन्मूलन केंद्र खुलेंगे, घर बिकेंगे, जीवन लुटेंगे, भविष्य अंधियारे में डूबेंगे..