विवेकानंद माथने
कोरोना वैसे तो एक सामान्य बीमारी मानी गई है। जिसे थोडे बहुत उपचार से ठीक किया जा सकता है। लेकिन कोरोना वायरस की तेजी से संक्रमित होने की क्षमता घातक है। यह कोरोना संक्रमण जितना अधिक होगा उतनी ही मरनेवालोंकी संख्या बढेगी।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार पूरे दुनिया में 30 मार्च तक कोविड-19 के बंद किये 190955 केसेस में से 34818 याने 18 प्रतिशत संक्रमित लोगों की मृत्यु हुई है और 156137 लोग याने की 82 प्रतिशत लोग ठीक हुये है। भारत में बंद किये गये मामलों में मृत्यु का प्रतिशत 24 रहा है। और दोनो जगह यह प्रतिशत बढता जा रहा है।
जिनकी मृत्यु हुई है उन्हे कमसे कम 14 दिन से अधिक समय से कोरोना संक्रमण हुआ होगा। 30 मार्च तक दुनिया भर में कूल कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या 735336 हो गई है। अगर इसी रफ्तार से मृत्यु होते रहे तो हम यह अनुमान कर सकते है कि पूरी दुनिया में 15 दिन बाद 18 प्रतिशत के हिसाब से कमसे कम 1.30 लाख लोगों की मृत्यु हो सकती है। यह आंकडा बहुत बडा है। और अगर इसी रफ्तार से कोरोना संक्रमण बढता रहा तो जैसे जैसे दिन बितेंगे कोरोना पूरे दुनिया में मृत्यु का तांडव मचा देगा।
भारत कोरोना स्टेज 3 में समुदाय संक्रमण के दौर में प्रवेश कर चुका है। भारत में भी कोरोना विकराल रुप धारण करने जा रहा है। जब तक कोविड-19 पर ठोस उपचार नही मिलता तबतक हमारे पास कोरोना वायरस का संक्रमण टालना यही एकमात्र उपाय बचता है। और यह तभी संभव होगा जब लोग संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में नही आयेंगे और बाहर से संक्रमण घर नही लायेंगे। इसलिये घरों में कैद रहना होगा। कोरोना वायरस अलग अलग सतहों के अनुसार तीन दिन तक रह सकता है। इसलिये बाहरी फैलाव रोकने के लिये संचार बंदी जरुरी है। साथ ही सभी संक्रमित लोगों को आयसोलेट या क्वारंटीन करके उनका उपचार करने और उसके अनुसार उपचार सुविधा बढाने की जरुरत है।
एक अध्ययन में यह पाया गया है कि जहां तापमान 17 डिग्री से कम रहा है, वहां कोरोना का संक्रमण तेजी से फैला है। जहां तापमान ज्यादा है वहां कोरोना फैलाव की गति कम है। दुनियां में कोरोना का फैलाव और मृत्यु ज्यादा संख्या में हो रहे है वह 90 प्रतिशत क्षेत्र 17 डिग्री से कम तापमान वाले देश है।
वैसे तापमान से कोरोना पर क्या असर होगा इस संदर्भ में वैज्ञानिकों में एकमत नही है। लेकिन दुनिया में कोरोना फैलाव से स्पष्ट होता है कि जहां का तापमान ज्यादा है, वहां संक्रमित लोगोंपर भलेही असर न पडे लेकीन कोरोना वायरस का वातावरण में जिंदा रहने की समय सीमा पर जरुर प्रभाव पडेगा या कोरोना की मारक क्षमता कमजोर पडेगी। ऐसा हुआ तो कोरोना संक्रमण के संदर्भ में भारत लिये यह एक लाभप्रद स्थिति हो सकती है।
लेकिन भारत की दूसरी कई सारी समस्याऐं है। भारत की आबादी 138 करोड याने यह दुनियां की कुल आबादी के लगभग 18 प्रतिशत है। जनसंख्या घनत्व दुनिया में सबसे ज्यादा है। मोटे तौर पर देश की 80 प्रतिशत आबादी गरीबी का जीवन जीती है। और जब सारे उद्योग बंद होते जा रहे है, खेती के काम बंद किये जा रहे है, तब उनकी आर्थिक स्थिति और भी खराब होगी। आज भी 66 प्रतिशत आबादी गावों में रहती है। गावों की स्वास्थ्य सुविधाऐं बहुत कमजोर है। इन सब को देखते हुये हमे केवल समय का इंतजार नही कर सकते बल्कि हर क्षण दक्षता के साथ काम करना होगा।
भारत सरकार ने अभीतक कई सारी गलतियां की है। इसे समझना इसलिये जरुरी है कि आगे गलतियों को दोहराया न जा सके। पहले हुई गलतियों से पूरे देश को भारी कीमत चुकानी पड रही है। 30 जनवरी को भारत में पहला कोरोना संक्रमित व्यक्ति मिलने के बाद विदेशों से आये लोगों को भारत में प्रवेश देने के लिये पूरी तरह दक्षता रखनी चाहिये थी। 15-20 लाख लोगों को 14 दिनों तक आयसोलेट, क्वारंटीन करके जांच कर प्रवेश देते तो आज का संकट इतना भयावह नही बनता।
दूसरी गलती कोरोना का भारत पर क्या प्रभाव पडेगा इसकी रिपोर्ट तैयार करने के लिये डॉक्टर, वैज्ञानिकों की एक टीम बनानी चाहिये थी। लेकिन समय रहते यह काम भी नही हुआ। तीसरी गलती जब पूरे दुनियां में कोरोना को रोकने के लिये एकमात्र उपाय के रुपमें लॉकडाउन करने को कहा जा रहा था तब लॉकडाउन का देश पर क्या असर पडेगा? और उसके चलते हमे क्या क्या तैयारी करनी पडेगी? लॉकडाउन के अलावा और क्या विकल्प हो सकते है? इसपर विचार करने के लिये विशेषज्ञ लोगों की टीम बनानी चाहिये थी। लॉकडाउन को अमल में लाने के 8-10 दिन पहले लोगों को जानकारी देनी चाहिये थी ताकि वह अपने स्थान पर सुरक्षित पहुंचते। तब स्थलांतरण का प्रश्न इतना भयावह रुप नही लेता।
चौथी गलती सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठकर एक समग्र और एकीकृत योजना बनानी चाहिये थी लेकिन यह तभी संभव होता जब हमारे पास विशेषज्ञ लोगोंकी कोई रिपोर्ट तैयार होती और केंद्र सरकार के राज्यों के साथ अच्छे संबंध होते। उसके अभाव में राज्यों के बीच समन्वय स्थापित करना मुश्किल हो गया।
पांचवी गलती हुई है कि लॉकडाउन के बाद लोगों को अपने गृह जिला स्थान पर पहुंचने के व्यवस्था करते। वहां शहर के बाहर आवश्यकता के अनुसार आयसोलेट या क्वारंटीन कर बिमार का उपचार करते ताकि लोग ठीक होने पर आसानी से अपने घर पहुंच पाते। जिससे स्थलांतर करनेवाले लोगों के लिये भयावह स्थिति उत्पन्न नही होती।
हमे अभी भी समझना चाहिये की 21 दिन के बाद भी लॉकडाउन नही हटा सकेंगे और यह अवधि बहुत ज्यादा लंबी हो सकती है। इसलिये जो लोग घर जाना चाहते है उन्हे अपने जिले के स्थान तक पहुंचाने की व्यवस्था करनी चाहिये। और वहां 14 दिन आयसोलेट या क्वारंटीन करके बादमें ही घर जाने के लिये अनुमती दी जाये।
यह इसलिये भी करना जरुरी है कि जहां रास्तों पर लोग है वहां भी वह सुरक्षित नही है। कोई भी व्यक्ति अपने घर परिवार में ही सुरक्षित होता है। एक तो वापस लौट रहे सारे लोग बिमार नही है। उनके साथ अपराधियों जैसा व्यवहार करना अन्याय है। सरकार के किये की सजा निरपराध लोगों को देना ठीक नही है। आजका संकट मनुष्य के अमानवीय व्यवहार के कारण पैदा हुआ है, उसे और ना बढाये।
जबतक कोरोना संकट चलेगा तबतक जिसे जरुरत है उस हर व्यक्ति, परिवार को राशन, किराना, गैस सिलेंडर और एक सुनिश्चित नगदी राशि देने की व्यवस्था तुरंत की जानी चाहिये। आज सरकारें, समाज जरुरतमंद लोगों के भोजन की व्यवस्था करने की कोशिश हो रही है। लेकिन देश में जैसे जैसे मरनेवालों की संख्या बढेगी, लोगों की भोजन और अन्य सुविधा देने की व्यवस्था चरमरा सकती है।
अगर ऐसा हुआ और लोगों के सामने कोरोना या भूख से मरने के अलावा कोई विकल्प नही रखा गया तब लोग कोरोना या भूख के बदले बंदूक की गोली से मरना पसंद करेंगे। अभी से लोगों के बीच आवाजें उठ रही है। उसे सुनिये, अन्यथा इससे अप्रत्याशित परिस्थिति पैदा हो सकती है। आनवाले दिनों में भारत को कोरोना संक्रमण के साथ साथ भुखमरी, सामुदायिक अवसाद, अफरातफरी का सामना करना पड सकता है।
यह सही है कि किसान, दुकानदार, मेडिकल स्टाफ के साथ पुलिस भी जान जोखिम डालकर मेहनत कर रहे है। लेकिन अनेक जगहोंपर पुलिस द्वारा घर लौटनेवाले निरपराध लोगों को बेरहमी से पीटा जा रहा है। पुलिस का यह अमानवीय व्यवहार चिंताजनक है। इसकी प्रतिक्रिया आ रही है। सरकार को आदेश देकर इसे रोकना होगा। अन्यथा उसे सरकारों की सहमति मानी जायेगी। अगर लोग सरकारी आदेशों का पालन करना छोड देंगे तब असामान्य परिस्थिति का सामना करना पड सकता है। पूरे देश में अफरातफरी मच सकती है।
सरकार के साथ साथ समाज और लोगों को भी जिम्मेदारी निभानी होगी, जैसे भारतीय समाज हर आपत्ती के समय निभाते आया है। कोई भूखा नही रहे इसका खास ध्यान रखना होगा। लोगों को जीने के लिये जरुरी चीजें उपलब्ध करानी होगी। जब सरकार अपनी भूमिका ठीक से नही निभा पा रही हो तब समाज की जिम्मेदारी और अधिक बढ जाती है।
हमे सब मिलकर इस समस्या का मुकाबला करना होगा। भारत को कोरोना संक्रमण से बचने के लिये एक व्यापक रणनीति बनानी होगी। फिर उस रणनीति के तहत सरकार, समाज और व्यक्ति को अपनी अपनी भूमिका निभानी होगी। बाहरी देशों की स्थिति से हम कुछ सीख सकते है लेकिन भारत की परिस्थिति उनसे भिन्न है इसलिये उसके आधार पर हमें नये रास्ते भी तलाशने होंगे।
कोरोना का मुकाबला करने के लिये गंभीरता से विचार करना होगा और एक साथ कई सारे कदम उठाने होंगे। भारत सरकार को एक टीम वर्क में काम करने की जरुरत है। निर्णय प्रक्रिया में विरोधी पार्टी के प्रामाणिक, अनुभवी और निर्णयक्षम लोगों को भी शामिल कर लेना चाहिये। इस कसौटी के समय में सारे काम मै अकेला कर लूंगा की भूमिका देश को नुकसान पहुंचा सकती है।
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